Chhattisgarhi Folk Songs: छत्तीसगढ़ी लोकगीतों का सामाजिक महत्व
Chhattisgarhi Folk Songs: संस्कृति, इतिहास, परंपरा और सामाजिक भावनाओं के वाहक

छत्तीसगढ़ की धरती गीतों (Chhattisgarhi Folk Songs) की गूंज से सदा समृद्ध रही है। यहाँ के लोकगीत केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति, इतिहास, परंपरा और सामाजिक भावनाओं के वाहक हैं। इन गीतों में जीवन का हर रंग — जन्म से मृत्यु तक, खेत से बाजार तक, देवी-देवता से प्रेम-विरह तक, समाहित है।
इस अध्याय में हम छत्तीसगढ़ी लोकगीतों के सामाजिक महत्व को समझेंगे – कैसे ये गीत गाँवों की आत्मा हैं, कैसे ये सामाजिक रिश्तों को गढ़ते हैं और कैसे ये पीढ़ियों से जन-मानस को जोड़ते आए हैं।
1. लोकगीतों की परिभाषा, Chhattisgarhi Folk Songs
लोकगीत वे पारंपरिक गीत होते हैं जो सामूहिक रूप से गाँव या समाज में गाए जाते हैं। ये पीढ़ियों से मौखिक परंपरा के रूप में चले आ रहे होते हैं और किसी एक रचनाकार के नहीं होते।
2. छत्तीसगढ़ी लोकगीतों के प्रमुख प्रकार, Chhattisgarhi Folk Songs
| गीत का प्रकार | विषय-वस्तु | प्रमुख उदाहरण |
|---|---|---|
| सोहर | जन्म के अवसर पर गाया जाने वाला गीत | “लईका जनम गे भइया रे…” |
| करमा गीत | करमा पर्व पर देवी-पूजन हेतु | “करमा धरम ल गाई रे बहिनी…” |
| देवारी गीत | गोवर्धन पूजा, गोविंदा गीत | “देवारी आय, देवार गावत हे…” |
| डोला गीत | किसी के निधन पर गाया जाने वाला शोक गीत | “डोला चल गिस रे मोर राजा…” |
| सुआ गीत | दीपावली के समय महिलाएं समूह में गाती हैं | “सुआ नाचे सुग्घर लागे…” |
| फाग गीत | होली के अवसर पर प्रेम-हास्य से भरपूर गीत | “फागुन के बहार आय रे…” |
| जंवारा गीत | नवरात्रि में देवी आराधना के गीत | “जंवारा म भुइंया ल सोहावत हन…” |
| माता गीत | देवी माँ के जयकारों से युक्त भक्ति गीत | “मइया के दरबार म भीड़ हे भारी…” |
3. लोकगीतों का सामाजिक योगदान
(i) सामूहिकता का विकास:
Chhattisgarhi Folk Songs: लोकगीत सामूहिक रूप से गाए जाते हैं। ये समाज के लोगों को एक सूत्र में बाँधते हैं। चाहे पर्व हो या विवाह, स्त्रियाँ और पुरुष मिलकर गीतों में भाग लेते हैं।
(ii) स्त्रियों की अभिव्यक्ति का माध्यम:
छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में महिलाओं की दबी हुई भावनाएं, इच्छाएं और सामाजिक अनुभव उजागर होते हैं। सुआ गीतों में वे अपने मायके, पति, सास-ससुर, समाज और भगवान तक को संबोधित करती हैं।
🎵 “मयारू सास मोला रोवावय, संगी मोर पीर नइ जानय…”
(मेरी प्यारी सास मुझे रुलाती है, लेकिन मेरे संगी को मेरी पीड़ा नहीं दिखती।)
(iii) श्रम और गीत का संबंध:
खेती-किसानी में जब महिलाएं या पुरुष काम करते हैं, तो गीत उनके श्रम को हल्का कर देते हैं। धान रोपते समय, हल चलाते वक्त, लकड़ी बीनते समय गीत गाना आम बात है।
(iv) संस्कृति का संरक्षण:
लोकगीतों में देवी-देवता, रीति-रिवाज, त्यौहार और लोककथाएं सुरक्षित रहती हैं। जैसे – करमा गीतों में करम देवता की कथा, फाग गीतों में राधा-कृष्ण की लीला।
4. लोकगीतों में सामाजिक समस्याएं और विरोध
लोकगीत केवल सुखद गीत नहीं होते, इनमें विरोध की ध्वनि भी होती है।
महिलाएं ससुराल की कठोरता, जातिवाद, निर्धनता, अन्याय जैसे मुद्दों को गीतों के माध्यम से प्रस्तुत करती हैं।
🎵 “भूख म पेट फाटथे, गा गा के जीयबो…”
(भूख से पेट फट रहा है, पर गीत गाकर जीना पड़ेगा।)
🎵 “सुख के दिन नइ आवंय, दुख के रतिया बिताय…”
(सुख के दिन नहीं आते, हम तो दुख की रातें बिताते हैं।)
5. धार्मिक विश्वास और लोकगीत
छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में धार्मिकता का भाव स्पष्ट दिखाई देता है। देवी गीत, जस गीत, भगत गीत जैसे कई गीतों में भक्ति और आस्था का प्रभाव है।
🎵 “मोर मइया जागे तो, जग जागे संसार…”
(मेरी माँ जागती है, तो पूरी दुनिया जाग जाती है।)
6. लोकगीतों में प्रेम और विरह
प्रेम और विरह लोकगीतों का अटूट हिस्सा हैं।
जब पति बाहर मजदूरी करने चला जाता है, तो पत्नी का दर्द गीत बनकर बहता है।
🎵 “सजन बनारस गेय, मोर अंगना सुनसान…”
(प्रियतम बनारस चला गया, मेरा आँगन सूना हो गया।)
7. लोकगीत और छत्तीसगढ़ की पहचान
छत्तीसगढ़ के कलाकार — जैसे तीजनबाई, रितुराज, दिलेश साहू आदि — इन लोकगीतों को मंच तक लाकर, छत्तीसगढ़ की पहचान को राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाते हैं।
लोकगीत अब फिल्म, टीवी और सोशल मीडिया का हिस्सा बन चुके हैं, जो छत्तीसगढ़ को नई पहचान दे रहे हैं।
8. लोकगीतों का बदलता स्वरूप
आज लोकगीतों को नए वाद्य, रफ्तार और मंचीय शैली में प्रस्तुत किया जा रहा है। इसका फायदा यह है कि नई पीढ़ी भी जुड़ रही है, लेकिन नुकसान यह कि पारंपरिक भाव और शब्द धीरे-धीरे खो रहे हैं।
Chhattisgarhi Folk Songs: छत्तीसगढ़ी लोकगीत गाँव की आत्मा हैं। वे केवल शब्द नहीं, संवेदना, श्रम, आस्था और संस्कृति का सजीव स्वर हैं।
इन गीतों ने न जाने कितने दर्द सहे, कितने दिलों को जोड़ा, और कितनी कहानियों को अमर किया।
“जब तक लोकगीत गूंजते रहेंगे, तब तक छत्तीसगढ़ जीवित रहेगा।”





