जॉली एलएलबी 3 रिव्यू: हंसी और दर्द के बीच छुपा सच्चाई का आईना

बॉलीवुड की बहुप्रतीक्षित फिल्म जॉली एलएलबी 3 सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। अक्षय कुमार और अरशद वारसी एक बार फिर अदालत में जॉली बनकर लौटे हैं, लेकिन इस बार कहानी सिर्फ कोर्टरूम ड्रामा तक सीमित नहीं है। निर्देशक सुभाष कपूर ने किसानों की आत्महत्या और जमीन हड़पने जैसी गंभीर समस्या को केंद्र में रखा है। खास बात यह है कि उन्होंने इस कड़वे सच को दर्शकों के लिए रोचक बनाने के लिए इसमें हास्य और भावनाओं का संतुलित मिश्रण किया है।
फिल्म की कहानी राजस्थान के बीकानेर जिले से शुरू होती है, जहां एक उद्योगपति हरिभाई खेतान (गजराज राव) गांव की जमीन हथियाकर अपने प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाना चाहता है। इस लालच और दबाव की वजह से एक किसान आत्महत्या करता है और उसकी विधवा न्याय के लिए संघर्ष करती है। यहीं से दोनों जॉली आमने-सामने आते हैं—एक न्याय दिलाने के लिए और दूसरा उसके खिलाफ।
फिल्म का निर्देशन बेहद प्रभावशाली है। सुभाष कपूर ने कोर्टरूम ड्रामा को बोरिंग होने से बचाया है और हर किरदार को बराबरी का महत्व दिया है। संवादों में करारा व्यंग्य और गहरी सच्चाई दोनों ही झलकती हैं। “आज किसानों के लिए कानून वो लोग बना रहे हैं, जिन्हें पालक और सरसो का फर्क नहीं पता”—जैसे डायलॉग सीधे दिल पर चोट करते हैं।
कलाकारों की बात करें तो अक्षय कुमार अपनी कॉमिक टाइमिंग और गंभीरता दोनों में संतुलित नजर आते हैं। अरशद वारसी की सहजता और व्यंग्यात्मक अंदाज फिल्म को और जीवंत बनाते हैं। सीमा बिस्वास अपनी खामोशी से ही दर्द और साहस दिखा देती हैं। गजराज राव का खलनायक अवतार सबसे बड़ा सरप्राइज है। वहीं, सौरभ शुक्ला जस्टिस त्रिपाठी के रूप में एक बार फिर महफिल लूट ले जाते हैं।
फिल्म का संदेश साफ है—किसानों की समस्याएं सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि असली जिंदगियां हैं। जॉली एलएलबी 3 हंसाते-हंसाते रुलाती भी है और सोचने पर मजबूर करती है। यह फिल्म सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज का आईना है।





