CG Hindi to Chhattisgarhi Dictionary: छत्तीसगढ़ी-हिन्दी शब्दकोष

CG Hindi to Chhattisgarhi Dictionary: छत्तीसगढ़ी भाषा की उत्पत्ति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

“बोली के मोती – छत्तीसगढ़ी-हिन्दी शब्दकोष” (CG Hindi to Chhattisgarhi Dictionary) एक ऐसी पुस्तक है जो छत्तीसगढ़ की मिट्टी से जुड़ी भाषा को संरक्षित और प्रचारित करने का प्रयास करती है। यह केवल शब्दों का संकलन नहीं है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ी संस्कृति, उसकी बोली, उसकी आत्मा को एकत्र करने की कोशिश है। छत्तीसगढ़ी, जो कभी केवल ग्रामीण संवाद का माध्यम समझी जाती थी, आज अपनी सांस्कृतिक और साहित्यिक पहचान बना चुकी है।

इस पुस्तक का उद्देश्य केवल शब्दों का अनुवाद करना नहीं है, बल्कि हर शब्द के पीछे छिपी भावना, स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को भी समझाना है। छत्तीसगढ़ी के अनेक शब्द ऐसे हैं जो केवल अर्थ नहीं, अनुभव भी प्रदान करते हैं। उदाहरण के तौर पर, “लउठना” शब्द केवल उठना नहीं दर्शाता, वह एक विशेष प्रकार की हलचल या हरकत को इंगित करता है जो केवल ग्रामीण परिवेश में समझ में आता है।

छत्तीसगढ़ी में व्याकरण की जटिलता नहीं है, यही इसकी सुंदरता है। इसकी सरलता, संगीतमय ध्वनियाँ, और जीवन से जुड़े मुहावरे इसे बोलने और सुनने वालों को आत्मीयता का अनुभव कराते हैं। इस पुस्तक में आपको प्रत्येक शब्द के साथ उसका हिन्दी अनुवाद, उदाहरण वाक्य, तथा उसकी स्थानीय उपयोगिता भी मिलेगी, ताकि पाठक शब्द को केवल जानें नहीं, उसे समझें और महसूस करें।

हमने इस शब्दकोष को रचना करते समय भाषा के जीवंत पहलुओं को प्राथमिकता दी है – जैसे लोकगीत, लोकनाट्य, पारंपरिक कहावतें और क्षेत्रीय संस्कार। छत्तीसगढ़ी केवल संवाद की भाषा नहीं, बल्कि यह एक जीवनशैली है। इसमें मिट्टी की खुशबू है, खेतों की हरियाली है, और लोकमानस की आत्मा बसती है।

यह पुस्तक छात्रों, भाषा प्रेमियों, शोधकर्ताओं और उन सभी के लिए उपयोगी सिद्ध होगी जो छत्तीसगढ़ी को केवल बोलना नहीं, समझना और संरक्षित करना चाहते हैं। इसके माध्यम से हम नई पीढ़ी को यह संदेश देना चाहते हैं कि यदि हम अपनी बोली को नहीं सहेजेंगे, तो हमारी पहचान खो जाएगी।

छत्तीसगढ़ी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग वर्षों से चल रही है। इस दिशा में यह पुस्तक एक छोटा सा प्रयास है, जो इस भाषा की समृद्धि और वैविध्य को जनमानस तक पहुँचाने का माध्यम बनेगा।

“बोली के मोती” एक संस्कृति का शब्दचित्र है। आशा है कि यह शब्दकोष हर उस पाठक के लिए एक अनमोल निधि सिद्ध होगी, जो छत्तीसगढ़ की आत्मा से जुड़ना चाहता है।

छत्तीसगढ़ी भाषा केवल एक बोली नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक आत्मा है। इसकी जड़ें इतनी गहरी हैं कि यह न केवल इतिहास की परतों में रची-बसी है, बल्कि आज भी जनजीवन की धड़कनों में स्पष्ट सुनाई देती है। इस अध्याय में हम छत्तीसगढ़ी भाषा की उत्पत्ति, विकास और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को विस्तार से जानेंगे।

1. छत्तीसगढ़ी की भाषा-पारिवारिक स्थिति, CG Hindi to Chhattisgarhi Dictionary

छत्तीसगढ़ी भाषा हिंद-आर्य भाषाओं की उप-श्रेणी के अंतर्गत आती है, और इसका संबंध मुख्य रूप से पूर्वी हिंदी समूह से माना जाता है। इसे अवधी और बघेली जैसी भाषाओं का निकट संबंधी भी माना जाता है। भाषाविदों के अनुसार, छत्तीसगढ़ी भाषा का विकास प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं से हुआ है, जो मध्य भारत में प्रचलित थीं।

छत्तीसगढ़ी भाषा, विशेषकर छत्तीसगढ़ राज्य के मध्य और दक्षिणी क्षेत्रों में व्यापक रूप से बोली जाती है। यह भाषा अपने सरल व्याकरण, मधुर उच्चारण और गहरे अर्थों से युक्त शब्दों के कारण अनोखी बन गई है।


2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – कब और कैसे बनी छत्तीसगढ़ी?

छत्तीसगढ़ी की भाषा के अस्तित्व की झलक हमें 11वीं से 13वीं शताब्दी की पुरानी पांडुलिपियों, शिलालेखों और धार्मिक ग्रंथों में देखने को मिलती है। कुछ भाषाविदों का मानना है कि यह भाषा नागवंशियों, कलचुरियों, और बाद में मराठों के शासनकाल में विकसित हुई।

छत्तीसगढ़ी भाषा की लिपि प्राचीन काल में शारदा और फिर देवनागरी रही है। लोककथाओं, वीर गाथाओं और देवी-देवताओं की आराधना में छत्तीसगढ़ी का खूब प्रयोग होता रहा है।


3. भाषा विकास में लोक संस्कृति की भूमिका, CG Hindi to Chhattisgarhi Dictionary

छत्तीसगढ़ी भाषा का विकास केवल राजाओं या शास्त्रों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह आम जनमानस द्वारा बोली गई भाषा रही है। छत्तीसगढ़ की लोकगीत परंपरा, जैसे—सुआ गीत, करमा गीत, ददरिया, बिहाव गीत—ने भाषा को न केवल जीवंत बनाए रखा, बल्कि उसे गहराई भी दी।

इन लोकगीतों में प्रयुक्त शब्द और भाव आज भी गांव-गांव में बोले जाते हैं। उदाहरण के तौर पर “बइरी” (दुश्मन), “कइसे हस रे” (कैसे हो?), “लउठना” (उठना) जैसे शब्द सिर्फ शब्द नहीं, एक भावनात्मक जुड़ाव हैं।


4. साहित्यिक विकास और लेखन परंपरा

हालांकि छत्तीसगढ़ी में लिखित साहित्य का आरंभ देर से हुआ, लेकिन 20वीं शताब्दी में कई साहित्यकारों ने इस क्षेत्र में योगदान दिया। छत्तीसगढ़ी के प्रमुख साहित्यकारों में डॉ. नरेंद्र देव वर्मा, डॉ. श्यामलाल चतुर्वेदी, लक्ष्मण मस्तूरिहा, और हरिराम वैष्णव जैसे नाम आते हैं, जिन्होंने छत्तीसगढ़ी कविता, कहानी और लोकगाथाओं को एक नया आयाम दिया।

“अरपा Pairi के धार” जैसी कालजयी रचनाएं आज भी जन-जन की जुबान पर हैं। छत्तीसगढ़ी पत्रकारिता, रेडियो, और लोकनाट्य माध्यमों ने भी भाषा के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभाई है।


5. छत्तीसगढ़ी की वर्तमान स्थिति और संवैधानिक मान्यता

वर्तमान में छत्तीसगढ़ी को छत्तीसगढ़ राज्य की प्रमुख क्षेत्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त है। राज्य सरकार ने इसे प्रशासनिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में प्रयोग में लाना शुरू कर दिया है।

हालाँकि, अभी तक भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में छत्तीसगढ़ी को शामिल नहीं किया गया है, लेकिन इसके लिए साहित्यिक और सामाजिक संगठनों द्वारा लगातार प्रयास किए जा रहे हैं।

छत्तीसगढ़ी को संविधानिक दर्जा मिलना केवल भाषा की पहचान नहीं होगी, बल्कि यह छत्तीसगढ़ की संस्कृति, अस्मिता और स्वाभिमान की जीत भी होगी।


6. भाषा का सामाजिक स्वरूप, CG Hindi to Chhattisgarhi Dictionary

छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग घरेलू संवाद, कृषि कार्य, परंपरागत उत्सव, और ग्राम्य प्रशासन में किया जाता है। यही कारण है कि यह भाषा गहराई से समाज में रची-बसी है। बच्चे इसे अपनी मातृभाषा के रूप में सीखते हैं और बुज़ुर्ग इसे पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करते हैं।

छत्तीसगढ़ी में संवाद अत्यंत सहज और आत्मीय होता है। “कइसे हस रे भइया?” जैसे संवाद केवल हालचाल नहीं पूछते, वे अपनापन भी जताते हैं।


छत्तीसगढ़ी भाषा केवल शब्दों का समूह नहीं है, यह एक संवेदनाओं की भाषा है। इसका विकास हजारों वर्षों की लोक-संस्कृति, सामाजिक आंदोलनों, और स्थानीय अनुभवों के संचित ज्ञान से हुआ है।

आज जब दुनिया ग्लोबलाइजेशन की ओर बढ़ रही है, तब अपनी बोली को संरक्षित रखना एक संघर्ष और संकल्प दोनों है। इस अध्याय का उद्देश्य आपको छत्तीसगढ़ी भाषा की ऐतिहासिक गहराइयों से जोड़ना है, ताकि जब आप आगे के अध्यायों में शब्दों का अनुवाद पढ़ें, तो हर शब्द में छिपा इतिहास भी महसूस कर सकें।

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