संभाजी और औरंगजेब के सेनापति दिलेर खान की ‘दोस्ती’ क्यों टूटी? पढ़ें 700 लोगों के हाथ काटने का वह किस्सा

संभाजी:छत्रपति संभाजी महाराज की पुण्यतिथि पर आज हम आपको एक ऐसी घटना के बारे में बताने जा रहे हैं, जो उनके जीवन के एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद मोड़ से जुड़ी है। यह वह समय था जब संभाजी ने अपने पिता छत्रपति शिवाजी से बगावत करते हुए औरंगजेब के सेनापति दिलेर खान के साथ हाथ मिला लिया था। हालांकि, यह दोस्ती बहुत लंबी नहीं चल पाई, और दिलेर खान की क्रूरता के कारण यह रिश्ता टूट गया। आइए जानें इस पूरी घटना के बारे में।

संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर के किले में हुआ था। बचपन में ही मां का निधन होने के बाद उनकी परवरिश उनकी दादी जीजाबाई ने की थी। शिवाजी ने संभाजी को संस्कृत में शिक्षा दिलाई और उन्हें प्रशासनिक कार्यों में संलग्न किया। 1670 में संभाजी को शिवाजी का उत्तराधिकारी माना गया, लेकिन उनकी सौतेली मां सोयराबाई चाहती थीं कि उनका बेटा राजाराम ही उत्तराधिकारी बने।

दिलेर खान से मिलाया हाथ

1678 में जब अफवाहों के चलते यह माना जाने लगा कि शिवाजी गंभीर रूप से बीमार हैं, संभाजी ने 13 दिसंबर 1678 को सतारा छोड़ दिया और औरंगजेब के गवर्नर दिलेर खान से हाथ मिला लिया। उस समय उनकी उम्र केवल 21 साल थी। संभाजी के इस कदम ने हर किसी को चौंका दिया था, और उनके पिता शिवाजी को इस बात से बहुत गहरा दुख हुआ था।

दिलेर खान की क्रूरता

अप्रैल 1679 में दिलेर खान ने भूपलगढ़ किले पर हमला किया और किले पर कब्जा कर लिया। यहां उन्होंने वहां के 700 लोगों के हाथ काट दिए और गांववालों को गुलाम बना लिया। यह क्रूरता संभाजी को अच्छी नहीं लगी। यदुनाथ सरकार की किताब में उल्लेख है कि संभाजी ने दिलेर खान के इस व्यवहार को नकारात्मक रूप से देखा।

संभाजी की मुगलों से बगावत

इस क्रूरता के बाद संभाजी ने 20 नवंबर 1679 को दिलेर खान के साथ संबंध तोड़ दिए। उन्होंने अपनी पत्नी येशुबाई के साथ मुगलों के शिविर से भागकर पन्हला पहुंचने का निर्णय लिया। इस दौरान येशुबाई ने पुरुष वेश में भी बदलाव किया और वे दोनों बीजापुर होते हुए पन्हला पहुंचे, जहां उन्होंने शिवाजी महाराज से मुलाकात की।

शिवाजी का निधन और संभाजी का राजतिलक

जब शिवाजी का निधन 3 अप्रैल 1680 को हो गया, तो संभाजी ने बिना किसी रोक-टोक के छत्रपति का पद संभाला। इस समय वह औरंगजेब के साथ युद्ध में पूरी तरह से उलझ गए थे। औरंगजेब ने दक्षिण भारत में अपने कब्जे के लिए एक बड़ा अभियान शुरू किया था, जिससे मराठों का हौसला और बढ़ गया।

संभाजी की मुगलों से गिरफ्तारी

1689 में जब औरंगजेब ने रत्नागिरी में संभाजी को धोखे से बंदी बना लिया, तो उसे कई कठिन यातनाओं का सामना करना पड़ा। यदुनाथ सरकार ने उल्लेख किया है कि औरंगजेब ने उन्हें जोकर के कपड़े पहनाए और सार्वजनिक रूप से अपमानित किया। इसके बाद उनकी आंखें निकाल ली गईं और उन्हें इस्लाम अपनाने का दबाव डाला गया, लेकिन संभाजी ने इंकार कर दिया।

संभाजी की शहादत

आखिरकार, 11 मार्च 1689 को औरंगजेब ने संभाजी के सारे अंग काट दिए और उनका सिर धड़ से अलग कर दिया। इसके साथ ही, संभाजी महाराज भारतीय इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गए। उनकी वीरता और संघर्ष आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं।संभाजी और औरंगजेब के सेनापति दिलेर खान की दोस्ती ने इतिहास के एक काले अध्याय को जन्म दिया। संभाजी की वीरता और उनकी निष्ठा की क़ीमत उनकी शहादत से चुकाई गई। उनका बलिदान मराठा साम्राज्य के लिए एक प्रेरणा है, और उनका संघर्ष आज भी हर भारतीय को प्रेरित करता है।

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