
बीजापुर : छत्तीसगढ़ का वो अधूरा सड़क जिसने आठ सालों में 56 करोड़ से 188 करोड़ रुपये तक की लागत तो ले ली, लेकिन आज भी यह सड़क अधूरी है। यह कहानी सिर्फ विकास के वादों और दावों की असफलता नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार के दलदल में डूबे उस सिस्टम की है, जिसने एक पत्रकार की जान तक ले ली।
अधूरी सड़क: भ्रष्टाचार की गाथा
2016 में केंद्र सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाकों में बेहतर कनेक्टिविटी के उद्देश्य से गंगालूर से नेलसनार तक 52 किलोमीटर लंबी सड़क बनाने की योजना शुरू की। इस प्रोजेक्ट की शुरुआत में लागत 56 करोड़ रुपये आंकी गई थी। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, यह आंकड़ा 188 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। चौंकाने वाली बात यह है कि आठ साल के लंबे अरसे के बाद भी यह सड़क अधूरी है, और जो हिस्सा बना है, वह भी उपयोग करने लायक नहीं है।
भ्रष्टाचार के दलदल में डूबी योजना
इस सड़क का हर मीटर भ्रष्टाचार की गंध
से भरा हुआ है। इसमें केवल एक व्यक्ति, सुरेश चंद्राकर, को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता। हर वह व्यक्ति, जिसने इस प्रोजेक्ट में भाग लिया, कहीं न कहीं इस भ्रष्टाचार का हिस्सा है। यह एक ऐसा खेल था, जहां हर स्तर पर घोटाला हुआ।
PWD अफसरों की भूमिका पर सवाल
इस प्रोजेक्ट में सबसे बड़ा सवाल PWD अफसरों की भूमिका पर उठता है। काम अधूरा रहने के बावजूद ठेकेदार सुरेश चंद्राकर को 116 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया। नियमों के मुताबिक, अंतिम भुगतान केवल काम पूरा होने पर किया जाना चाहिए था। लेकिन इस प्रोजेक्ट में यह नियम ताक पर रख दिया गया।
मुकेश चंद्राकर: एक आवाज जो दबा दी गई
इस अधूरी सड़क और भ्रष्टाचार की सच्चाई को सामने लाने वाले थे पत्रकार मुकेश चंद्राकर। उन्होंने इस भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई और इसे उजागर किया। उनकी रिपोर्टिंग के कारण यह मामला जनता के बीच पहुंचा। लेकिन भ्रष्टाचारियों को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। उनके संघर्ष की कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।
अधूरी सड़क: विकास या विफलता?
यह सड़क सिर्फ एक निर्माण कार्य नहीं है; यह हमारे सिस्टम की विफलता और भ्रष्टाचार का प्रतीक बन चुकी है। 52 किलोमीटर लंबी सड़क, जो आठ साल में भी पूरी नहीं हो सकी, न केवल सरकार की नाकामी को उजागर करती है, बल्कि इस बात का सबूत है कि कैसे विकास के नाम पर भ्रष्टाचार किया जाता है।
क्या इस भ्रष्टाचार के खिलाफ होगी कार्रवाई?
यह सवाल हर नागरिक के मन में उठता है कि क्या इस भ्रष्टाचार के जिम्मेदार लोगों पर सख्त कार्रवाई होगी? क्या सिर्फ सुरेश चंद्राकर को दोषी ठहराना पर्याप्त है, या फिर उन सभी अफसरों और अधिकारियों को भी जिम्मेदार ठहराया जाएगा, जिन्होंने अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया?
यह मामला हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम ऐसी व्यवस्था में जी रहे हैं, जहां विकास के नाम पर भ्रष्टाचार को ही बढ़ावा दिया जाता है? यह सिर्फ एक सड़क का मामला नहीं है; यह उस सड़े-गले सिस्टम की कहानी है, जिसमें जनता के पैसे का गलत इस्तेमाल किया जाता है।