नवा रायपुर का पहला ट्राइबल म्यूजियम बना आकर्षण का केंद्र, दिख रही आदिवासी जीवनशैली की अनोखी झलक

रायपुर। नवा रायपुर में छत्तीसगढ़ का पहला ट्राइबल म्यूजियम (जनजातीय संग्रहालय) बनकर तैयार हो गया है, जिसकी तारीफ अब देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी हो रही है। करीब 10 एकड़ जमीन में फैले इस म्यूजियम को 9 करोड़ 27 लाख रुपए की लागत से बनाया गया है। यहां राज्य के 43 जनजातीय समुदायों और उनकी उपजातियों की संस्कृति, परंपरा और रहन-सहन को बेहद खूबसूरत और जीवंत तरीके से दिखाया गया है।
क्या खास है म्यूजियम में?
म्यूजियम में 14 थीम आधारित गैलरियां हैं, जहां हर गैलरी आदिवासी जीवन के किसी खास पहलू को दिखाती है – जैसे उनका खाना, पहनावा, घर, त्योहार, नृत्य, संगीत, खेती-किसानी, हथियार, शिकार उपकरण और घरेलू चीज़ें।
म्यूजियम की एक खास चीज़ है “लाल बंगला”, जिसे भुंजिया जनजाति की रसोई के रूप में दिखाया गया है। यह लाल मिट्टी से बनी एक अलग झोपड़ी होती है जिसमें सिर्फ भुंजिया समुदाय के लोग ही जा सकते हैं। अगर कोई बाहरी व्यक्ति चला जाए, तो वे पूरी रसोई नष्ट कर देते हैं और दोबारा इसे नई जगह पर ही बनाते हैं।
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मूर्तियां जो लगती हैं जीवित
यहां रखी गई मूर्तियां (स्कल्पचर) इतनी असली लगती हैं कि देखने पर ऐसा लगता है मानो आप किसी असली आदिवासी गांव में घूम रहे हों। हर मूर्ति किसी न किसी गतिविधि जैसे नाचते हुए, खाना बनाते हुए या खेती करते हुए दिखाई देती है।

आभूषण भी हैं खास
म्यूजियम में आदिवासी महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले नुकीले कंगनों को भी दिखाया गया है। ये कंगन सिर्फ सजावट के लिए नहीं बल्कि सेल्फ डिफेंस (आत्मरक्षा) के लिए भी काम आते हैं- खासकर जब महिलाएं अकेले जंगल में जाती हैं।
परंपरागत तकनीक और कलाएं
यहां आदिवासियों की बांस कला, चित्रकारी, गोदना कला, लकड़ी की शिल्पकला जैसी पारंपरिक कलाओं को भी शानदार ढंग से दर्शाया गया है। साथ ही, अबुझमाड़िया, बैगा, कमार, पहाड़ी कोरवा, बिरहोर, भुंजिया और पंडो जैसे विशेष जनजातीय समूहों की अनोखी जीवनशैली भी देखने को मिलती है।

रिसर्च के लिए अनमोल जगह
इस म्यूजियम को देखने आम लोग तो आ ही रहे हैं, साथ ही ट्राइबल कल्चर पर रिसर्च करने वालों के लिए भी यह जगह बहुत खास साबित हो रही है। यह म्यूजियम छत्तीसगढ़ की आदिवासी विरासत को संजोने और दिखाने का बेहतरीन प्रयास है।





