भारत की बढ़ती बिजली की मांग: 2030 तक 600 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा की जरूरत

भारत में बढ़ती बिजली की मांग को पूरा करने के लिए गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों पर निर्भरता बढ़ाना जरूरी हो गया है। एक नए अध्ययन के अनुसार, 2030 तक देश को 600 गीगावाट (GW) अतिरिक्त बिजली की मांग का सामना करना पड़ सकता है। यह अध्ययन ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) द्वारा किया गया है।
गैर-जीवाश्म ऊर्जा से होगी भारी बचत और रोजगार के अवसर
अध्ययन में बताया गया है कि यदि भारत 2030 तक अपनी गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता को 600 गीगावाट तक बढ़ाने में सफल होता है, तो इससे बिजली उत्पादन की लागत में 6-18 पैसे प्रति यूनिट की कमी आ सकती है। साथ ही, इस कदम से 42,000 करोड़ रुपये की भारी बचत और लगभग एक लाख अतिरिक्त नौकरियां भी पैदा हो सकती हैं।
बिजली की मांग में तेज वृद्धि की संभावना
फरवरी 2025 में भारत की बिजली की मांग रिकॉर्ड 238 गीगावाट तक पहुंच गई थी। अनुमान है कि गर्मियों के महीनों में यह मांग 260 गीगावाट तक भी जा सकती है। असामान्य रूप से गर्म मौसम और मजबूत आर्थिक विकास के कारण यह मांग पहले के अनुमानों से कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ रही है।
अक्षय ऊर्जा स्रोतों का योगदान
अध्ययन में यह भी बताया गया है कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने में विभिन्न अक्षय ऊर्जा स्रोतों का क्या योगदान रहेगा:
सौर ऊर्जा: 377 गीगावाट (सबसे बड़ा योगदानकर्ता)
पवन ऊर्जा: 148 गीगावाट
जल विद्युत: 62 गीगावाट
परमाणु ऊर्जा: 20 गीगावाट
चुनौतियाँ और समाधान
स्वच्छ ऊर्जा में बदलाव की प्रक्रिया में कई चुनौतियाँ सामने आ रही हैं। इसमें भूमि अधिग्रहण, समय पर ग्रिड कनेक्टिविटी और संतुलन, आपूर्ति श्रृंखला की बाधाएं और केंद्रीय नीलामी के तहत अनटाइड क्षमता जैसी समस्याएं शामिल हैं।
सरकार की प्रतिक्रिया और रणनीति
विद्युत और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा राज्य मंत्री श्रीपद येसो नाइक ने इस अध्ययन के विमोचन के अवसर पर कहा, “हमने 2070 तक शून्य तक पहुंचने के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए हैं। 2014 में 76 गीगावाट से बढ़कर 2025 में गैर-जीवाश्म क्षमता 220 गीगावाट तक पहुंच चुकी है। प्रत्येक राज्य को अपनी अनूठी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लाभ उठाना चाहिए।”
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अध्यक्ष घनश्याम प्रसाद ने भी कहा कि बिजली की सामर्थ्य को बढ़ावा देने के लिए नीतियों को लगातार उन्नत करना चाहिए। उन्होंने हर राज्य की आवश्यकताओं का आकलन करने के लिए वार्षिक वैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
अध्ययन में यह स्पष्ट किया गया है कि 2030 तक 600 गीगावाट गैर-जीवाश्म क्षमता का लक्ष्य प्राप्त करना न केवल आर्थिक रूप से फायदेमंद होगा, बल्कि यह पर्यावरण की दृष्टि से भी टिकाऊ होगा। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को एकजुट होकर काम करना होगा।