मणिकर्णिका घाट पर भस्म होली: शिव के अघोर स्वरूप की अनोखी परंपरा

मणिकर्णिका घाट पर हर साल होने वाली मसान होली इस बार भी पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई गई। यह अनोखी परंपरा भगवान शिव के अघोर स्वरूप से जुड़ी है, जिसमें भक्त जलती चिताओं की राख से होली खेलते हैं।

पौराणिक मान्यता:
शिवपुराण के अनुसार, जब भगवान शिव माता पार्वती का गौना कराकर काशी लौटे, तो देवताओं और मनुष्यों ने होली खेली। लेकिन उनके प्रिय भूत-प्रेत इस उत्सव में शामिल नहीं हो सके। इस पर भगवान शिव ने अपने अघोरेश्वर रूप में श्मशान पर विशेष होली खेली, जिसे मसाने की होली कहा जाता है।

घाट पर अनोखा नजारा:
इस वर्ष भी मणिकर्णिका घाट पर भक्तों और नागा साधुओं ने चिता भस्म से होली खेली। जलती चिताओं के पास भक्तों ने एक-दूसरे पर राख उड़ाई, डमरू बजाए और गले में नरमुंडों की माला पहनी। हजारों देशी-विदेशी श्रद्धालु इस दृश्य को देखने घाट पर पहुंचे।

सुरक्षा व्यवस्था:
प्रशासन ने इस बार कड़ी सुरक्षा रखी थी। डीजे और ड्रोन पर रोक लगाई गई थी। बावजूद इसके, बाबा विश्वनाथ के भक्तों ने परंपरा निभाई और भयावह दिखने वाले इस आयोजन में श्रद्धा और आस्था से हिस्सा लिया।

मसान होली यह दर्शाती है कि जहां दुनिया में मृत्यु शोक का कारण होती है, वहीं काशी में इसे मोक्ष का उत्सव माना जाता है।

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