विश्व बैंक ने बंद किया “चिराग” परियोजना, पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने किया था शुभारंभ
रायपुर। छत्तीसगढ़ समावेशी ग्रामीण एवं त्वरित कृषि विकास (चिराग) परियोजना के उद्देश्य और प्रगति पर असंतोष जताते हुए विश्व बैंक ने इसे बंद करने की घोषणा की है। इस संबंध में बैंक के भारत में कार्यवाहक निदेशक ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव के अलावा छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव, कृषि विभाग की एसीएस और चिराग परियोजना के डॉयरेक्टर को पत्र भेजा है।
अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (आईएफएडी) और विश्व बैंक द्वारा सह-वित्तपोषित इस परियोजना को बोर्ड ने 15 दिसंबर, 2020 को मंजूरी दी थी। लेकिन बीते चार सालों के दौरान योजना के तहत लगभग 1.44 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 1 प्रतिशत) का वितरण हुआ है, और न ही लक्षित समुदायों में से किसी को भी परियोजना अनुदान का लाभ नहीं मिला है।
अक्टूबर 2022 से परियोजना विकास उद्देश्य और कार्यान्वयन प्रगति दोनों को असंतोषजनक दर्जा दिया गया है। सितंबर 2024 में त्रिपक्षीय पोर्टफोलियो समीक्षा बैठक के दौरान बात पर सहमति बनी कि परियोजना को किसी भी पुनर्गठन को उचित ठहराने के लिए 2024 के अंत तक प्रदर्शन में काफी सुधार करने और 30 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का वितरण करने की आवश्यकता है। लेकिन इनमें से कोई भी बात पूरी नहीं हुई, लिहाजा प्रस्तावित पुनर्गठन और आंशिक निरस्तीकरण पर परियोजना के क्रियान्वयन को जारी रखने को असंभव बताया।
इस संबंध में, 23 दिसंबर, 2024 को आयोजित बैठक के दौरान हुई चर्चाओं के आधार पर, IFAD और विश्व बैंक दोनों ने यह विचार व्यक्त किया कि परियोजना के कार्यान्वयन की वर्तमान स्थिति को देखते हुए, परियोजना की शेष अवधि के भीतर परियोजना विकास उद्देश्यों को प्राप्त करना असंभव है। नतीजतन, IFAD और विश्व बैंक दोनों ने DEA के परामर्श से इस बात पर सहमति व्यक्त की कि परियोजना को जल्द से जल्द बंद करना सर्वोत्तम हित में होगा।
बता दें कि पूर्ववर्ती भूपेश बघेल सरकार ने Chhattisgarh Inclusive Rural and Accelerated Agriculture Growth (चिराग) परियोजना का शुभारंभ किया था। परियोजना के तहत किसानों की आमदनी को बढ़ाना, गांवों में पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना और युवाओं को विभिन्न तरह की फसलों के उत्पादन में मदद के उद्देश्य से परियोजना को विश्व बैंक ने आर्थिक मदद भी दी है।
परियोजना के अंतर्गत आदिवासी इलाकों के स्थानीय युवाओं को मछली पालन, पशु-पालन, उद्यानिकी, विशेष प्रजातियों की फसलों के उत्पादन, क्षेत्रीय जलवायु आधारित पौष्टिक खाद्य पदार्थों के उत्पादन के कामों से जोड़े जाने के अलावा युवाओं को सेल्स और मार्केटिंग का प्रशिक्षण दिया जाना था। युवाओं को अत्याधुनिक कृषि तकनीकों की शिक्षा दी जानी थी, इसके साथ उन्हें स्टार्टअप के लिए प्रशिक्षित और प्रोत्साहित भी किया जाता।
चिराग परियोजना को बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर, सुकमा, मंगेली, बलौदाबाजार, बलरामपुर, जशपुर, कोरिया, सुरजपुर और सरगुजा के आदिवासी विकासखंडों में लागू किया जाना था।
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