राजनादगांव की पहली महिला सांसद, जिन्होंने महल को कर दिया संगीत के लिए दान

पहली महिला सांसद: छतीसगढ़ की एक ऐसी महारनी जो राजनांदगांव के संसदीय इतिहास में एकमात्र महिला सांसद के तौर पर याद की जाती हैं।, जिन्हे हम पद्मावती देवी के नाम से जानते है।खैरागढ़ रियासत की बहू, रानी पद्मावती ने न केवल राजनीति में बल्कि शिक्षा और संगीत के क्षेत्र में भी अपने योगदान से इतिहास रचा।

पद्मावती देवी ने 1967 में चौथी लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर राजनांदगांव सीट से जीत हासिल की थी। वह खैरागढ़ रियासत की रानी थीं और उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण से ही एशिया का एकमात्र इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय स्थापित हुआ, जो आज भी उनकी विरासत का प्रतीक है।
और ये वही विश्विद्यालय है जहाँ से लता मंगेशकर का गहरा नाता था, जहाँ उन्हें 9 फरवरी 1980 को डी-लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया था.
लता मंगेशकर इस विश्वविद्यालय को कला और संगीत के लिए एक गुरुकुल की तरह देखती थीं.

रानी पद्मावती ने इस विश्वविद्यालय के लिए अपना महल कमल विलास तक को राज्य सरकार को दान कर दिया था। साथ ही उन्होंने पद्मावती पुस्तकालय की स्थापना भी की, जो महिला और बालिकाओं को पढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल थी।

पद्मावती देवी को हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, नेपाली और छत्तीसगढ़ी भाषाओं में महारथ हासिल थी। बाद में वे छत्तीसगढ़ी बोलने लगी थीं। वे भारत के हर प्रान्त के अलावा अमेरिका, रुस, जर्मनी, फ्रान्स,ब्रिटेन, जापान का भ्रमण कर चुकी थीं। वे बहुत से विश्वविद्यालयों की आजीवन सदस्य रहीं।

1967 के लोकसभा चुनाव में, रानी पद्मावती ने 1 लाख 32 हजार 444 वोट हासिल किए, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी भाजपा के पी. राय को मात्र 46,004 वोट मिले थे। इस तरह उन्होंने अपने विरोधी को 86,440 वोटों के विशाल अंतर से हराया और राजनांदगांव लोकसभा में एक ऐतिहासिक जीत दर्ज की।

पद्मावती देवी ने महिलाओं के कल्याण के लिए भी कई अहम कार्य किए। खैरागढ़ में उन्होंने महिलाओं के लिए राजभवन में क्लब की स्थापना की, जिसमें बैडमिंटन, कैरम, सिलाई-बुनाई और संगीत के साथ-साथ घुड़सवारी और बंदूक चलाने का प्रशिक्षण भी दिया जाता था।

पद्मावती देवी का जन्म 1918 में उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ में हुआ था। वह प्रतापगढ़ के राजा प्रताप बहादुर सिंह की छोटी बेटी थीं। 16 साल की उम्र में उनका विवाह खैरागढ़ के राजा बीरेन्द्र बहादुर से हुआ। उन्होंने राजनीति में अपने कदम रखे, और पं. जवाहरलाल नेहरू और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल के प्रोत्साहन से 1952 से 1967 तक विधायक भी रहीं।

1967 में वह लोकसभा सांसद बनीं, लेकिन 1971 में कांग्रेस ने उनका टिकट काट दिया। उन्होंने एनसीओ के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं। खैरागढ़ रियासत की सदस्य बनने के बाद से वह जनहित को लेकर हमेशा सक्रिय रहीं। उनका निधन 12 अप्रैल 1987 को हुआ। और इसके बाद से, राजनांदगांव संसदीय सीट से कभी भी किसी महिला को टिकट नहीं मिला।

रानी पद्मावती देवी की कहानी न सिर्फ राजनीति, बल्कि समाज और संस्कृति के क्षेत्र में उनके योगदान को भी बयां करती है। उनके कार्यों की छाप आज भी खैरागढ़ और आसपास के इलाकों में देखी जा सकती है। उनकी शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के लिए की गई पहलें हमेशा याद रखी जाएंगी।

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