
रायपुर : छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनावों की सरगर्मियां जोरों पर हैं। इस चुनावी दंगल में जहां कुछ नए चेहरे उभरकर सामने आए हैं, वहीं कई पुराने दावेदारों के सपने अधूरे रह गए हैं। नामांकन प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी है और अब टिकट वितरण को लेकर भाजपा और कांग्रेस के भीतर ही असंतोष देखने को मिल रहा है।
रायपुर में बढ़ी कलह, भाजपा-कांग्रेस में बगावत के सुर
राजधानी रायपुर में महापौर पद के लिए 28 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया है। भाजपा ने मीनल चौबे को प्रत्याशी बनाया है, जो पिछले कार्यकाल में नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष थीं। वहीं, कांग्रेस ने दीप्ति दुबे को मैदान में उतारा है, जो एक समाजसेविका हैं और पूर्व सभापति प्रमोद दुबे की पत्नी हैं।
लेकिन इन दोनों उम्मीदवारों को टिकट मिलने के बाद भाजपा और कांग्रेस, दोनों पार्टियों में विरोध के स्वर बुलंद हो गए हैं। कई ऐसे कार्यकर्ता जो लंबे समय से पार्टी के लिए काम कर रहे थे, वे इस फैसले से नाराज हैं और टिकट कटने से असंतोष जता रहे हैं।
पूर्व MIC मेंबर्स को टिकट नहीं, निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी
इस बार भाजपा से सरीता दुबे, सीमा साहू और विश्वदिनी पांडेय का टिकट काट दिया गया है। वहीं, कांग्रेस में तो असंतोष इस कदर बढ़ गया कि पार्टी को अपनी चुनावी रैलियां तक रोकनी पड़ी। कई नेताओं ने नाराज होकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया, जबकि कुछ ने निर्दलीय मैदान में उतरने का फैसला किया है।
निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले प्रमुख नाम:
– समीर अख्तर
– आकाश तिवारी
– पुरुषोत्तम बोहरा
– हरदीप होरा
– जितेंद्र अग्रवाल
गौरतलब है कि ये सभी नेता पिछले कार्यकाल में MIC में शामिल थे और अब टिकट कटने के कारण वे बगावत के मूड में हैं।
महापौर का डिमोशन बना चर्चा का विषय
इस बार कांग्रेस के भीतर एक बड़ा फैसला चर्चा में है। पार्टी ने पूर्व महापौर एजाज ढेबर को भगवतीचरण शुक्ल वार्ड से पार्षद पद का टिकट दिया है, जिसे उनका डिमोशन माना जा रहा है। खास बात यह है कि उनकी पत्नी अरजुमन ढेबर को भी मौलाना अब्दुल रऊफ वार्ड वार्ड से प्रत्याशी बनाया गया है। एक ही परिवार के दो सदस्यों को टिकट देने से कांग्रेस में नाराजगी और ज्यादा बढ़ गई है।
अब तक कांग्रेस ने 4 वार्डों में प्रत्याशी नहीं घोषित किए
चुनाव की तारीख नजदीक आने के बावजूद कांग्रेस ने अब तक 4 वार्डों में अपने प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है। इससे कार्यकर्ताओं में असमंजस बना हुआ है और भाजपा इस देरी का पूरा फायदा उठाने की रणनीति बना रही है।
क्या जनता देगी बागियों को समर्थन?
इन सब विवादों और बगावत के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता किसे अपना समर्थन देती है। क्या टिकट कटने से नाराज नेता निर्दलीय लड़कर जीत हासिल कर पाएंगे? क्या कांग्रेस और भाजपा की अंतर्कलह का फायदा किसी तीसरे दल को मिलेगा?