भारत में फाइलेरिया: हाथीपांव जैसी बीमारी से लाखों लोग प्रभावित, जाने कैसे होती है ये बीमारी

भारत ने मेडिकल क्षेत्र में कई उल्लेखनीय सफलताएँ हासिल की हैं, लेकिन कुछ बीमारियाँ आज भी गंभीर चुनौती बनी हुई हैं। फाइलेरिया (या हाथीपांव) ऐसी ही एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारी है, जिससे देश के लाखों लोग प्रभावित हैं। मच्छरों के काटने से फैलने वाली यह बीमारी न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक, सामाजिक और आर्थिक स्तर पर भी मरीज को गंभीर रूप से प्रभावित करती है।
कहाँ सबसे ज्यादा है फाइलेरिया का प्रभाव?
फाइलेरिया मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है, जहाँ गर्म और आद्र्र जलवायु मच्छरों के लिए अनुकूल होती है।
स्वास्थ्य मंत्रालय और WHO के आंकड़ों के अनुसार:
उत्तर प्रदेश में फाइलेरिया के सर्वाधिक मामले सामने आते हैं, खासकर गोरखपुर, आजमगढ़ और वाराणसी जैसे जिलों में।
इसके अलावा बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य भी गंभीर रूप से प्रभावित हैं।
भारत के 20 राज्यों के 250 से अधिक जिलों में फाइलेरिया के मामले दर्ज हैं।
भागलपुर (बिहार) के एक सर्वे में 2.07% लोगों में फाइलेरिया के परजीवी मिले।
फाइलेरिया क्या है और कैसे फैलता है?
फाइलेरिया एक परजीवी जनित रोग है जो निमेटोड (सूक्ष्म कीड़े) के कारण होता है। यह परजीवी शरीर के लसीका तंत्र (Lymphatic system) को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे गंभीर सूजन और विकृति हो सकती है।
मुख्य कारण: मच्छर (विशेषकर क्यूलेक्स, एनोफिलीज़, एडीज़)
रोग की गति धीमी होती है और लक्षण वर्षों बाद दिखाई दे सकते हैं
फाइलेरिया कितना खतरनाक है?
स्थायी विकलांगता: अंगों में असामान्य सूजन (एलिफेंटियासिस) और विकृति
मानसिक व सामाजिक प्रभाव: सामाजिक बहिष्कार और आत्मसम्मान में गिरावट
आर्थिक बोझ: लगातार इलाज, सर्जरी और अस्पताल खर्च
इम्यून सिस्टम पर असर: रोग प्रतिरोधक क्षमता में गिरावट
विशेषज्ञों की सलाह:
अगर फाइलेरिया का इलाज प्रारंभिक अवस्था में हो जाए, तो स्थायी विकलांगता से बचा जा सकता है। नई रिसर्च में वयस्क परजीवियों को नष्ट करने वाली दवाओं पर काम हो रहा है।
आप क्या कर सकते हैं?
मच्छरों से बचाव करें: मच्छरदानी, कीटनाशक, स्वच्छता बनाए रखें,हर साल चलने वाले MDA कैंपेन में दवा जरूर लें, फाइलेरिया के लक्षण दिखें तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें





