नई दिल्ली:जस्टिस यशवंत वर्मा मामले पर बोले कपिल सिब्बल, जांच रिपोर्ट सार्वजनिक करना खतरनाक मिसाल

नई दिल्ली: राज्यसभा सांसद और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने जस्टिस यशवंत वर्मा से जुड़े कथित कैश कांड की आंतरिक जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ‘खतरनाक मिसाल’ बताया है। जस्टिस वर्मा 14 मार्च को नई दिल्ली स्थित उनके आवास में आग लगने की घटना के दौरान कथित रूप से नकदी पाए जाने के बाद विवादों में आए थे। इसके बाद उनका तबादला दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट कर दिया गया। इस मामले की जांच के लिए मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने तीन सदस्यीय पैनल का गठन किया है। सुप्रीम कोर्ट ने 22 मार्च को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश अनु शिवरामन की सदस्यता वाली समिति से जांच कराने का फैसला किया। साथ ही, दिल्ली हाईकोर्ट की आंतरिक जांच रिपोर्ट और दिल्ली पुलिस आयुक्त संजय अरोड़ा द्वारा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय के साथ साझा किए गए वीडियो और तस्वीरें भी सार्वजनिक की गईं।
कपिल सिब्बल ने कहा कि जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक करना एक खतरनाक ट्रेंड है और संस्था को ऐसे मामलों से निपटने के लिए एक लिखित तंत्र स्थापित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि बार के साथ परामर्श करके ही इस मामले में कोई फैसला लिया जाना चाहिए था, क्योंकि बार को भी जजों के बारे में उतनी ही जानकारी होती है जितनी कोर्ट को। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इस तरह की चीजों को सार्वजनिक किया गया, तो न्यायपालिका की विश्वसनीयता खतरे में पड़ सकती है। सिब्बल ने यह भी कहा कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक किसी जिम्मेदार नागरिक को इस पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि बार को हड़ताल जैसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए, क्योंकि इससे यह संकेत जाएगा कि कोई पहले ही दोषी मान लिया गया है।
सिब्बल ने न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने पश्चिम बंगाल के जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय और जस्टिस शेखर यादव के मामलों का हवाला देते हुए कहा कि न्यायपालिका ने इन मुद्दों पर कोई संस्थागत प्रतिक्रिया नहीं दी, जो कि गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि अगर संस्था अपनी आंतरिक कमियों को दूर नहीं करेगी, तो राज्यसभा के सभापति या सत्ताधारी राजनीतिक दल राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को फिर से लागू करने की मांग कर सकते हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि NJAC का इन आरोपों से कोई संबंध नहीं है, लेकिन न्यायपालिका को अपनी कमियों पर आत्ममंथन करना चाहिए, ताकि जनता का उसमें विश्वास बना रहे।