Type-1 Diabetes की चपेट में मासूम, अस्पतालों में बढ़ रही मरीजों की संख्या

रायपुर। डायबिटीज की बीमारी अब सिर्फ युवाओं और बुजुर्गों तक सीमित नहीं रही, बल्कि अब यह बच्चों को भी प्रभावित कर रही है। 0 से 14 साल तक के बच्चे भी टाइप-1 डायबिटीज का शिकार हो रहे हैं, और उनकी संख्या हर दिन बढ़ रही है। यह बीमारी जन्मजात और जेनेटिक है, जिसके कारण बच्चों को जीवनभर इंसुलिन लगानी पड़ती है।
अंबेडकर अस्पताल के डॉक्टरों के अनुसार, टाइप-1 डायबिटीज मुख्य रूप से जेनेटिक जीन्स के कारण होती है। पैनक्रियाज के बीटा सेल्स खत्म हो जाते हैं, जिनकी जिम्मेदारी इंसुलिन का निर्माण करना होता है। इस कारण बच्चों का शुगर कंट्रोल नहीं हो पाता और उन्हें बार-बार इंसुलिन लगानी पड़ती है। इस बीमारी का असर 8 से 10 साल के बच्चों में अधिक देखा जा रहा है। पिछले कुछ समय में, सरकारी और निजी अस्पतालों में इस तरह के बच्चों की संख्या बढ़ी है। अगर देर से इलाज शुरू होता है तो यह बीमारी और जटिल हो सकती है। कई बार बच्चों को दिन में 4 बार भी इंसुलिन लगाना पड़ता है।
क्या है टाइप-1 डायबिटीज
टाइप-1 डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है, जिसमें शरीर का पैनक्रियाज इंसुलिन का उत्पादन बंद कर देता है। इस बीमारी के कारण रक्त शर्करा का स्तर नियंत्रित नहीं रह पाता। इसके लक्षणों में बार-बार प्यास लगना, बार-बार पेशाब आना, अधिक भूख लगना, वजन का अचानक गिरना, चिड़चिड़ापन, थकान और आंखों की कमजोरी जैसे संकेत होते हैं। यदि समय रहते उपचार न किया जाए, तो यह किडनी और हार्ट की ब्लड वेसल्स पर भी असर डाल सकता है।
सरकार कर रही मुफ्त ईलाज
छत्तीसगढ़ राज्य में टाइप-1 डायबिटीज के बच्चों के लिए मुख्यमंत्री बाल मधुमेह सुरक्षा योजना के तहत इलाज किया जा सकता है। इस योजना में बच्चों को एक किट दी जाती है, जिसमें ग्लूकोमीटर, ग्लूकोस्ट्रीप और इंसुलिन जैसी जरूरी चीजें होती हैं। यह योजना 21 साल तक के बच्चों के लिए मुफ्त है, जिसके बाद वे दूसरी स्वास्थ्य योजनाओं के तहत अपना इलाज करा सकते हैं। वर्तमान में रायपुर में 114 बच्चे इस योजना से लाभ उठा रहे हैं।
बदलते लाइफस्टाइल से बढ़ रही टाइप-2 और टाइप-3 डायबिटीज
इसके अलावा, बदलते लाइफस्टाइल के कारण अब टाइप-2 और टाइप-3 डायबिटीज के मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है। खासकर 25 साल तक के युवक-युवतियों में यह बीमारी तेजी से फैल रही है। इसलिए, बच्चों और युवाओं के बीच डायबिटीज के प्रति जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है, ताकि समय रहते सही इलाज मिल सके।





