कोर्ट के आदेश के बावजुद, देखिए किस तरह से उड़ी लोकतंत्र की धज्जियां

रायपुर : मशहूर वेब सीरीज ‘पंचायत’ तो आपने देखी ही होगी.. जिन्होंने नहीं देखा उनके लिए इसकी कहानी का थोड़ा जिक्र हो जाए… इस वेब सीरिज में एक प्रधान होती हैं… लेकिन पंचायत का कार्यभार संचालन प्रधान पति के हाथों से ही होता है… और तो और प्रधान पति पूरे गांव में खुद को प्रधान के तौर पर पेश करते हैं…. लेकिन ये कहानी सिर्फ एक सीरीज तक सीमित नहीं है.. ये अमूमन भारत के कई उन क्षेत्रों की कहानी है जिसमें महिला राजनेता चुनकर आई हैं। यह फिल्म समाजिक तानेबानी पर कुठाराघात थी जहां महिलाओं को महज घर-बार संभालने वाली की तौर पर पेश किया जाता है। वैसे देखा जाए तो सरकार महिलाओं को आगे बढ़ाने उन्हें सशक्त बनाने की मंशा के तहत महिला आरक्षण लागू तो करती है… लेकिन पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता ने महिलाओं के मिले इस अधिकार पर भी अपना हक जमा लिया है। आरक्षण के बावजूद राजनीतिक क्षेत्रों की बागडोर भी पुरुषों के हाथ में रह जाती है…

 

लोकतंत्र की उड़ी धज्जियां

अब तक आपने जो सुना वह एक वेब सीरीज की कहानी थी लेकिन ऐसा ही कुछ वाकया हुआ है छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में। जहां पंडरिया ब्लॉक के परसवाड़ा ग्राम पंचायत में 12 वार्डों में से 6 महिला और 6 पुरुष पंच चुनकर आए हैं। लेकिन शपथ का लाभ केवल पंच पतियों के हिस्से में आया। जी हां यहां केवल पुरुष पंचों ने शपथ ली और महिला पंचों के पतियों ने भी संविधान को घता बताते हुए शपथ ले डाली। हद तो तब हो गई जब चुनी हुई जनप्रतिनिधि यानि महिला पंच वहां मौजूद तक नहीं थी। सभी घर पर बैठकर, घर की जिम्मेदारी संभाल रही थी। सोचिए….. और मन में जोर डालिए… इस मानसिकता को आप क्या कहेंगे….?

 

आखिर ऐसा क्यों किया गया..?

चलिए अब इस मामले को जरा विस्तार से समझते हैं। हाल ही में छत्तीसगढ़ में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव संपन्न हुए हैं… जिसमें विधायक भावना बोहरा के विधानसभा क्षेत्र पंडरिया के इस परसवाड़ा ग्राम पंचायत में 6 महिला पंच जनादेश के बाद चुनकर आई। सभी चुने हुए जनप्रतिनिधियों को मंगलवार के दिन शपथ दिलाई गई। इस पूरे समारोह का वीडियो सोशल मीडिया पर खुब वायरल हुआ..  वीडियो में साफ देखा गया कि पंचायत सचिव ने 6 महिला पंचों की जगह उनके पतियों को पद की शपथ दिलाई  गई। जिसके बाद शपथ ग्रहण समारोह स्थल जय श्री राम और हर हर महादेव के नारे से गूंज उठा.

 

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर अब क्या..?

दरअसल पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को आरक्षण तो दे दिया गया पर निर्वाचन के बावजूद ज्यादातर मामलों में उनके पति या अन्य परिजन उनकी जगह खुद को इस पद का हकदार मानने लग जाते हैं। लेकिन अब ऐसा करना जनप्रतिनिधि महिलाओं के पति या परिजनों को भारी पड़ सकता है। पंचायत मंत्रालय पंचायती राज की तीनों संस्थाओं में महिला प्रतिनिधि के कामकाज में उनके पति के दखल को अपराध की श्रेणी में लाकर गंभीर दंड और जुर्माने की तैयारी में जुटा हुआ है। इसी तरह पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत करने के लिए सभी श्रेणियों में न्यूनतम स्कूल स्तर की शिक्षा अनिवार्य करने पर भी विचार किया जा रहा है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्यों में पंचायती राज संस्थाओं में महिला प्रतिनिधि या मुखिया के कामकाज को उनके परिवार के पुरुष संभालते हैं। ऐसे हालात को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के 6 जुलाई 2023 के आदेश पर पंचायती राज मंत्रालय ने पूर्व खान सचिव सुशील कुमार की अध्यक्षता में एक सलाहकार समिति का गठन किया। हाल ही में समिति ने पंचायती राज मंत्रालय को रिपोर्ट भी सौंप दी है।

 

इसलिए नहीं मिल रही कमान..

बता दें कि सलाहकार समिति ने माना कि पंचायती राज की तीन स्तरों की संस्थाओं में महिलाओं को आरक्षण तो दिया गया, पर अभी भी पितृसत्तात्मक मानदंडों का प्रचलन, कानूनी सुरक्षा उपाय सीमित होने और सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं के चलते महिलाओं को पूर्ण अधिकार नहीं मिला है। समिति ने गहन जांच कर प्रॉक्सी भागीदारी के प्रयासों को समाप्त करने के लिए एक रिपोर्ट तैयार की गई है। इसमें कई सिफारिशें भी शामिल है। मंत्रालय ने इस रिपोर्ट को मंजूर कर लिया है। अब सरकार के स्तर पर इस पर निर्णय किया जाएगा।

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