कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद पर आज आएगा फैसला, जानिए क्या हैं हिंदू-मुस्लिम पक्ष की दलीलें
मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद पर आज गुरुवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आएगा. 6 जून को सुनवाई पूरी होने के बाद हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था. श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह से संबंधित कुल 15 याचिकाओं पर अदालत का फैसला सुनाएगा. हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में अर्जी दायर की थी. हिंदू पक्ष द्वारा दाखिल याचिकाओं में दावा किया गया है कि मस्जिद का निर्माण कटरा केशव देव मंदिर की 13.37 एकड़ भूमि पर किया गया है और उन्होंने वहां पर पूजा का अधिकार दिए जाने की मांग की. वहीं, मुस्लिम पक्ष ने प्लेसिस ऑफ वर्शिप एक्ट, वक्फ एक्ट, लिमिटेशन एक्ट, स्पेसिफिर पजेशन रिलीफ एक्ट का हवाला दिया.
14 दिसंबर, 2023 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटे शाही ईदगाह मस्जिद परिसर का अदालत की निगरानी में सर्वे के लिए एडवोकेट कमीशन के गठन की मांग वाली अर्जी स्वीकार कर ली थी. इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस आदेश को मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका पर 17 जनवरी 2024 को इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा एडवोकेट कमीशन के गठन वाले आदेश पर रोक लगा दी थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया था कि CPC के आर्डर 7 रूल 11 के तहत मुकदमे की स्थिरता सहित विवाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट के समक्ष सुनवाई जारी रहेगी.
सुप्रीम कोर्ट के रोक वाले आदेश के बाद हिंदू पक्ष ने रेवेन्यू सर्वे की मांग वाली अर्जी भी इलाहाबाद हाई कोर्ट में दाखिल की थी. मई 2023 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद से संबंधित सभी मामलों को मथुरा कोर्ट से अपने पास ट्रांसफर कर लिया था.
यह विवाद मुगल सम्राट औरंगजेब के समय की शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़ा है जिसका निर्माण भगवान कृष्ण की जन्मस्थली पर बने मंदिर को कथित तौर पर ध्वस्त करने के बाद किया गया.
मुस्लिम पक्ष की क्या है दलील?
अदालत के समक्ष प्रबंधन ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह (मथुरा) की समिति ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि पूजा स्थलों के समक्ष लंबित मुकदमे एचसी अधिनियम 1991, परिसीमन अधिनियम 1963 और विशिष्ट राहत अधिनियम 1963 पर रोक लगाते हैं. मस्जिद समिति की ओर से पेश होते हुए वकील तसनीम अहमदी ने तर्क दिया कि हाई कोर्ट के समक्ष लंबित अधिकांश मुकदमों में वादी भूमि के मालिकाना अधिकार की मांग कर रहे हैं, जो 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह मैनेजमेंट के बीच हुए समझौते का विषय था. दोनों के बीच विवादित भूमि को विभाजित कर दिया गया था और दोनों पक्षों को एक-दूसरे के क्षेत्रों (13.37 एकड़ परिसर के भीतर) से दूर रहने के लिए कहा.
मुस्लिम पक्ष ने ये भी दलील दी कि उपासना स्थल कानून यानी प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत भी मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है. 15 अगस्त 1947 के दिन जिस धार्मिक स्थल की पहचान और प्रकृति जैसी है वैसी ही बनी रहेगी. उसकी प्रकृति नहीं बदल सकती. लिमिटेशन एक्ट और वक्फ अधिनियम के तहत भी इस मामले को देखा जाए. इस विवाद की सुनवाई वक्फ ट्रिब्यूनल में हो. यह सिविल कोर्ट में सुना जाने वाला है ही नहीं.
हिंदू पक्ष की क्या है दलील?
दूसरी ओर हिंदू वादी ने तर्क दिया कि शाही ईदगाह के नाम पर कोई संपत्ति सरकारी रिकॉर्ड में नहीं है और उस पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया है. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यदि उक्त संपत्ति वक्फ संपत्ति है तो वक्फ बोर्ड को बताना चाहिए कि विवादित संपत्ति किसने दान की. उन्होंने यह भी कहा कि पूजा अधिनियम, परिसीमन अधिनियम और वक्फ अधिनियम इस मामले में लागू नहीं होते हैं.
हिंदू पक्ष ने ये भी दलील दी कि ईदगाह का पूरा ढाई करोड़ का एरिया भगवान श्रीकृष्ण विराजमान का गर्भगृह है. सीपीसी का आदेश 7 , नियम 11 इस याचिका में लागू नहीं होता है.