राहुल गांधी ने 1984 सिख विरोधी हिंसा पर जताया अफसोस, कहा- मैं जिम्मेदारी लेने को तैयार हूं

अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी में हुए एक कार्यक्रम में राहुल गांधी ने 1984 के सिख विरोधी दंगों को लेकर एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि उस समय वे मौजूद नहीं थे, लेकिन अब एक कांग्रेस नेता होने के नाते वे इस हिंसा की नैतिक जिम्मेदारी लेने को तैयार हैं। राहुल गांधी के इस बयान को राजनीतिक नजरिए से देखा जा रहा है, लेकिन इसे एक मानवीय भाव भी माना जा सकता है।
कांग्रेस की छवि सुधारने की कोशिश
राहुल गांधी का यह बयान कांग्रेस की पुरानी “सर्वसमावेशी” छवि को फिर से स्थापित करने की कोशिश माना जा रहा है। अब तक देखा गया है कि अल्पसंख्यक समुदायों में कांग्रेस को समर्थन मिलता रहा है, खासकर उन राज्यों में जहां वे खुद अल्पसंख्यक हैं। पंजाब, जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस को हिंदू वोट भी मिलते रहे हैं, वहीं केरल और बंगाल में वामपंथी पार्टियों को समर्थन मिला।
सिखों के घाव अभी भी हरे
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद तीन दिन तक दिल्ली और अन्य शहरों में सिखों पर हिंसा हुई। हजारों सिख मारे गए, घर जला दिए गए, और समुदाय को गहरी चोट पहुंची। आज भी सिख समुदाय इस दर्द को भूला नहीं है। राहुल गांधी का माफी जैसा यह बयान सिखों की भावनाओं को समझने और उनका भरोसा फिर से जीतने की एक कोशिश है।
इतिहास की पृष्ठभूमि
सिखों का भारत के इतिहास में अहम योगदान रहा है। महाराजा रणजीत सिंह के समय में उनका साम्राज्य बहुत विशाल था। आजादी के बाद, बंटवारे में सिखों ने भारी जान-माल की कुर्बानी दी लेकिन भारत में रहना चुना। उन्होंने कांग्रेस पर भरोसा किया लेकिन 1984 की हिंसा ने उस भरोसे को तोड़ दिया।
कांग्रेस की संवेदनहीनता
हिंसा के वक्त कांग्रेस नेताओं के विवादित बयान, जैसे “जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती हिलती है”, सिख समुदाय को और आहत कर गए। तब कई नेताओं पर हिंसा भड़काने के आरोप भी लगे। हालांकि बाद में कांग्रेस ने सिखों को अहम पदों पर बैठाकर अपने रवैये में बदलाव दिखाया — जैसे डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाना।
अब समय बदला है
आज राहुल गांधी उस समय के लिए अफसोस जता रहे हैं और जिम्मेदारी लेने की बात कर रहे हैं। इससे यह संदेश भी जाता है कि कांग्रेस अब पुराने घावों को भरना चाहती है और अल्पसंख्यकों के प्रति अपनी संवेदनशील छवि को फिर से बनाना चाहती है।





