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जाति जनगणना की याचिका पर विचार करने से SC का इनकार, कहा- मामला शासन के अधिकार क्षेत्र में

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पिछड़े और अन्य हाशिये पर पड़े वर्गों के कल्याण के लिए सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना कराने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और कहा कि यह मुद्दा शासन के अधिकार क्षेत्र में आता है. न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने याचिकाकर्ता पी प्रसाद नायडू को अपनी याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी, जिसमें उन्होंने जनगणना के लिए आंकड़ों की गणना में तेजी लाने का निर्देश देने की मांग की थी.

पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रविशंकर जंडियाला और अधिवक्ता श्रवण कुमार करणाराम से कहा, ‘इस बारे में क्या किया जा सकता है? यह मुद्दा शासन के अधिकार क्षेत्र में है. यह नीतिगत मामला है.’ जंडियाला ने कहा कि कई देशों ने ऐसा किया है लेकिन भारत को अभी ऐसा करना है. उन्होंने कहा, ‘1992 के इंदिरा स्वाहने फैसले (मंडल आयोग के फैसले) में कहा गया है कि यह जनगणना समय-समय पर की जानी चाहिए.’ पीठ ने उनसे कहा कि वह याचिका खारिज कर रही है, क्योंकि अदालत इस मुद्दे में हस्तक्षेप नहीं कर सकती. अदालत के मूड को भांपते हुए वकील ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे पीठ ने मंजूर कर लिया.

नायडू ने करणाराम के माध्यम से दायर अपनी याचिका में कहा कि केंद्र और उसकी एजेंसियों ने आज तक जनगणना-2021 के लिए गणना नहीं की है. उन्होंने कहा, ‘शुरू में कोविड-19 महामारी के कारण ऐसा नहीं किया गया था और बाद में इसे बार-बार स्थगित किया गया. देश की 2021 की जनगणना की गणना अप्रैल, 2019 में शुरू की गई थी. लेकिन यह आज तक पूरी नहीं हुई.’ याचिका में कहा गया है कि विनम्रतापूर्वक यह प्रस्तुत किया गया है कि भारत की जनगणना की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, जनगणना 2021 के संचालन के लिए पहली तैयारी बैठक 9 अप्रैल, 2019 को आयोजित की गई थी. इसमें कहा गया है कि इसके बाद जनगणना के लिए गणना की प्रक्रिया कई बार स्थगित होती रही है.

याचिका में कहा गया है कि जनगणना न केवल जनसंख्या वृद्धि पर नजर रखने का साधन है, बल्कि यह देश के लोगों का व्यापक सामाजिक-आर्थिक डेटा भी उपलब्ध कराती है. इसका उपयोग नीति-निर्माण, आर्थिक नियोजन और विभिन्न प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है. साथ ही यह भारतीय जनसंख्या की विभिन्न विशेषताओं जैसे लिंग, आयु, आय, व्यवसाय, प्रवासन पैटर्न आदि पर सांख्यिकीय जानकारी का सबसे बड़ा भंडार है. याचिका में कहा गया है कि उदाहरण के लिए, जनगणना भारत में प्रत्येक गांव, कस्बे और वार्ड के लिए प्राथमिक डेटा का एकमात्र स्रोत है. जनगणना में देरी के कारण डेटा में बड़ा अंतर पैदा हो गया है, क्योंकि पिछली जनगणना 2011 में हुई थी, यानी 13 साल पहले.

इसमें कहा गया है कि सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना से वंचित समूहों की पहचान करने, समान संसाधन वितरण सुनिश्चित करने और लक्षित नीतियों के कार्यान्वयन की निगरानी करने में मदद मिलेगी. साथ ही कहा गया कि 1931 का अंतिम जाति-वार डेटा पुराना हो चुका है. जनगणना और सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) से प्राप्त सटीक डेटा केंद्र सरकार के लिए सामाजिक न्याय और संवैधानिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है. स्वतंत्रता के बाद पहली बार 2011 में आयोजित सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना (SECC) का उद्देश्य जाति संबंधी जानकारी सहित सामाजिक-आर्थिक संकेतकों पर व्यापक आंकड़े एकत्र करना था. याचिका में कहा गया है कि आंकड़ों की गुणवत्ता और वर्गीकरण संबंधी चुनौतियों के कारण कच्चे जाति आंकड़ों को जारी करने और प्रभावी उपयोग में बाधा उत्पन्न हुई है तथा इस डेटा को वर्गीकृत और श्रेणीबद्ध करने के लिए एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया गया था, लेकिन इसकी सिफारिशें अभी तक केंद्र सरकार द्वारा जारी नहीं की गई हैं.

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