बस्तर में सामुदायिक पुलिसिंग से बैकफुट पर लाल आतंक…
रायपुर। पिछले नौ महीने के भीतर छत्तीसगढ़ के घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर में पांच- पांच किलोमीटर की दूरी पर 31 नए सुरक्षा कैंप स्थापित होने से नक्सलियों की कमर टूटती नजर आ रही है। सुरक्षा बल के जवान हर मोर्चे पर सफल हो रहे हैं।
इसके पहले सुरक्षा कैंप की दूरी अधिक होने से नक्सली जवानों को नुकसान पहुंचाने में कामयाब होते रहे हैं मगर अब परिस्थितियां नक्सलियों के विपरीत हो चुकी हैं। एक बार फिर दंतेवाड़ा-नारायणपुर जिला के सीमाई क्षेत्र में सुरक्षाबल के साथ हुए मुठभेड़ में 31 नक्सली मारे जा चुके हैं। इसे न केवल छत्तीसगढ़ के बल्कि देश के इतिहास में सबसे बड़ा एनकाउंटर माना जा रहा है। पिछले नौ महीनों में 188 नक्सली मारे गए।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरकार ने मार्च 2026 तक नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षाबलों के 250 कैंप और नियद नेल्लानार योजना (आपका अच्छा गांव) के तहत 58 नए कैंप स्थापित करने की रणनीति बनाई है। इसके साथ ही सामुदायिक पुलिसिंग का दायरा बढ़ाया गया है। ताकि नक्सल प्रभावित क्षेत्र के स्थानीय लोगों व पुलिस के बीच गहरी दोस्ती हो सके।
सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे ग्रामीण नक्सलियों के नेटवर्क से बाहर निकल रहे हैं। सरकार के प्रति स्थानीय लोगों का भरोसा बढ़ने से सुरक्षा बलों का सूचना तंत्र मजबूत हुआ है। बड़े नक्सली नेताओं की उपस्थिति का पता चलते ही अभियानों को गति दी जा रही है।
नक्सलियों के गढ़ में ही खोल रहे कैंप
अधिकारियों ने बताया कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में ही सुरक्षा कैंप खुलने से नक्सलवाद का दंश झेल रहे गांव के लोग मुख्यधारा से जुड़ पा रहे हैं। खासकर नियद नेल्लानार योजना के तहत स्थापित कैंपों के माध्यम से बंदूक के साथ-साथ विकास के जरिए भी युद्ध छिड़ा हुआ है।
यहां स्कूल-अस्पताल भवन, सड़क बनने से न सिर्फ विकास का मार्ग प्रशस्त हो रहा है बल्कि राज्य सरकार की तमाम योजनाएं गांव वासियों तक पहुंचनी शुरू हो गई है। कैंप खुलने के साथ ही गांव तक पक्की सड़कों का निर्माण किया जा रहा है।
अविभाजित मध्य प्रदेश से इन घोर नक्सल क्षेत्रों के लोग शोषण, भ्रष्टाचार, और जुल्म का शिकार होते रहे। नक्सलियों पर नियंत्रण नहीं होने से यहां के निवासियों का भरोसा सरकारी तंत्र से उठ चुका था। इसके चलते ग्रामीणों के बीच नक्सलियों की पैठ अधिक मजबूत थी।