देह मेरी, हल्दी तुम्हारे नाम की: बिलासपुर में करवा चौथ का जश्न
बिलासपुर। देह मेरी, हल्दी तुम्हारे नाम की, सिर मेरा चुनरी तुम्हारे नाम की, मांग मेरी सिंदूर तुम्हारे नाम की, माथा मेरा बिंदिया तुम्हारे नाम की, नाक मेरी नथनी तुम्हारे नाम की, गला मेरा मंगलसूत्र तुम्हारे नाम की। सिर्फ पत्नी ही अपना पूरा अस्तित्व अपने पति में ढूंढती है।
विवाहित महिलाओं को समर्पित और सुहागिनों के लिए सबसे खूबसूरत और चर्चित इस कविता का यथार्थ महिलाओं के लोकप्रिय त्योहार करवा चौथ व्रत पूजन के साथ नजर आता है। अलसुबह से ही महिलाएं अपने अखंड सौभाग्य के लिए संकल्प के साथ करवाचौथ का व्रत रखती हैं।
शहर में इस परपंरा की शुरुआत दयालबंद से हुई थी। वैसे तो करवाचौध का व्रत पंजाबी समाज की महिलाएं रखती है, लेकिन इसकी लोकप्रियता इतनी तेजी से बढ़ी है कि हिंदू समाज की महिलाएं भी यह व्रत रखने लगी हैं।
बिलासपुर में इस व्रत की शुरुआत दयालबंद में रहने वाले पंजाबी समाज के लोगों ने शुरू किया था। पंजाबी महिलाएं इस व्रत को रखना शुरू की। जब अन्य महिलाओं ने उनके व्रत और सज संवकर पूजा पाठ करने की परंपरा को देखा, तो उन्हें भी लगा कि हमें भी यह व्रत रखकर अपने पति की लंबी आयु की कामना करनी चाहिए। इसी के बाद हिंदू महिलाएं भी करवाचौथ का व्रत रखने लगी और महज दो से तीन दशक में ही करवाचौथ का व्रत शहर के लगभग हर हिंदू घर की महिलाएं रखने लगी हैं। ऐसे में अब करवाचौथ का पर्व यहां भी प्रमुख हो गया है और निष्ठा से महिलाएं इस व्रत को रखती हैं।
अलसुबह से शुरू हो जाती है
व्रत की तैयारी आदर्श पंजाबी महिला संगठन की अध्यक्षा पम्मी गुंबर बताती हैं कि यह हमारे समाज के प्रमुख पर्वों में से एक है। इसकी तैयारी सुबह सुरज निकलने से पहले कर दी जाती है, जब असमान में तारे रहते हैं। इस दौरान स्नान कर सरगी खाते हैं, फिर सासु मां चुढ़िया पहनाकर व्रत की शुरुआत करती हैं। इसके बाद शाम चार बजे पूजा करने के साथ करवा माता की कहानी सुनते हैं।
रात में चंद्रमा निकालने के बाद उसका अर्ध्य करते हैं और छलनी से चांद को देखते हैं। इसके बाद उसी छलनी से पति को देखते हैं। फिर पति पानी पिलाकर व्रत तुड़वाते हैं। व्रत की मान्यता है कि इसे रखने से पति को लंबी आयु मिलती है और समृद्वि आती है।