पहाड़ी के ऊपर लंबी गुफा में विराजमान माता चंपई, महाभारत काल से है मान्यता

महासमुंद। चंपई माता मंदिर, जो महासमुंद जिला मुख्यालय से 11 किलोमीटर की दूरी पर मोहंदी गांव के घने पहाड़ों पर स्थित है। पहाड़ी के ऊपर एक लंबी गुफा है, जिसमें माता चंपई विराजमान हैं। मंदिर में प्रवेश के लिए गुफा में एक सुरंग बनी हुई है। जो पहले एक छोटे से छेद की तरह दिखती थी, लेकिन ग्रामीणों के प्रयासों से अब यह 250 से 300 मीटर तक खुल गई है। मंदिर में देवी चंपई माता की प्रतिमा के साथ-साथ शेषनाग की प्रतिमा भी है। मंदिर के बारे में बताया जाता है कि यह 500 साल से भी पुराना है और यहां महाभारत काल में पांडवों के आने की भी मान्यता है।
मंदिर के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। एक कहानी के अनुसार, पहले महासमुंद जिला हैजा से पीड़ित था, और एक महिला देवी के रूप में प्रकट हुई और मंदिर बनाने के लिए कहा, जिसके बाद हैजा का प्रकोप जिले में पूरी तरह से ख़त्म हो गया। मंदिर परिसर में प्रतिवर्ष नवरात्रि पर धार्मिक अनुष्ठान होते हैं। माता स्थापना के पीछे पहाड़ी पर भगवान द्वारपाल की प्रतिमा स्थापित है, जो बाहरी विपदाओं से मंदिर की रक्षा करते हैं। महासमुंद में खल्लारी माता का मंदिर भी है, जो 25 किमी दूर खल्लारी गांव में स्थित है।
7 वीं शताब्दी के चीनी पर्यटक व्हेनात संघ ने अपनी यात्रा आलेख में लिखा है कि छत्तीसगढ़ के 36 गढ़ में से एक गढ़ चंपापुर हुआ करता था। जानकारी के अनुसार कलचुरी वंश के राजा भीमसेन द्वितीय की राजधानी चंपापुर के नाम से विख्यात थी। चंपापुर की नगर देवी चम्पेश्वरी देवी थी, जो आज भी ब्रम्हगिरी पर्वत की महादेव पठार नामक स्थान के एक गुफा में विराजमान हैं। जिसे आज चंपई माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां आज भी आस पास के ग्रामीण चम्पेश्वरी माता की पूजा पाठ बड़ी ही श्रद्धा के साथ कर रहे हैं।
ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार यहां बौद्धकालीन ब्रम्हागिरी पर्वत और महादेव पठार साबित होता हैं। इस पर्वत का उदगम गौरखेड़ा गांव से होता है, जो लोहार गांव के पास स्थित कोडार नाला से ख़त्म होती है। इस पर्वत पर पश्चिम से पूर्व की तरफ 3 भव्य पठार और 5 खौफनाक गुफाएं हैं। इन गुफाओं से वर्तमान में रानी खोल गुफा और चम्पेश्वरी माता गुफा मार्ग जुड़ा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि ये दोनों गुफाएं संघाराम भवन के आने-जाने का द्वार है। अन्य जानकारों की माने तो चंपापुर के राजा भीमसेन द्वितीय पर दूसरे राजा जयराज ने आक्रमण कर पराजित कर दिया था।
जिसके बाद भीमसेन के भाई भरतबल की पत्नी रूपमती ने इसी सुरंग में उन्हें सुरक्षित छुपा के रखा था। रूपमती एक कौशल नरेश राजकन्या थी। वही युद्ध में पराजय के बाद राजा भीमसेन ने अपनी पत्नी रानी लोकप्रभा को जगलों में ढूंढा, लेकिन उसका कही कोई अत पता नहीं चला। जिससे हताश होकर भीमसेन खलारी के राजा हरीब्रम्हा देव की शरण में पहुंचा। वही भीमसेन के भाई ने आत्महत्या कर ली, जिसके कुछ समय बाद राजा की भी मृत्यु हो गई। आक्रमण के कारण चंपापुर का का वैभव पूरी तरह से तहस-महस हो गया था। वही वहां के रहवासी अलग-अलग हिस्सों में बंटकर पलायन कर गए साथ ही कुछ लोग बेलर गांव में बस गए और बाकी लोग पहाड़ की पूर्व तलहटी हिस्सों में बस गए, जिसके बाद इस स्थान को चंपई नाम से जाना गया।
छत्तीसगढ़ का एक गढ़ मोहंदी खूबसूरत वादियों से घिरा है। लेकिन, सरंक्षण के अभाव में यहां कई रास दफन हो चुका है। इस गढ़ में 18 किमी का पठार है, जहां प्राकृतिक झरना के अलावा अबूझ अंधेरी सुरंगनुमा गुफा है जो आज भी लोगों के लिए रहस्य बना है। ग्रामीणों ने सात साल पहले सुरंग के रहस्य से परदा उठाने की कोशिश की लेकिन, शासन से सहयोग नहीं मिलने से संसाधन की कमी के कारण 100 से 150 मीटर सुरंग ही खोद पाए। यह रहस्यमय सुरंग आज भी कौतूहल का विषय बना है।
36 गढ़ों को मिलाकर छत्तीसगढ़ का नामकरण किया गया है। गढ़ों को संरक्षित करने में पुरातत्व विभाग ने नजरअंदाज कर दिया है। छत्तीसगढ़ के 36 गढ़ों में से चार गढ़ मोहंदी, खल्लारी, सिरपुर और सुअरमार महासमुंद जिले में हैं। संरक्षण के अभाव में महासमुंद जिले के चार में से दो गढ़ खंडहर होने की कगार पर हैं। शासन सिरपुर को विश्व धरोहर के रूप में पहचान देने की रूपरेखा बना रही है। वहीं, खल्लारी की भी पहचान प्रदेशभर में है। ऐसे में सुअरमाल और मोहंदी गुमनामी में खोते जा रहा है।
जिला मुख्यालय से 10 किमी दूर मोहंदी गढ़ में 18 किमी का पठार है। इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। इस गढ़ में एक सुरंग है। लेकिन इसकी लंबाई अब तक कोई नहीं जान पाया है। पठार के ऊपरी हिस्से का नजारा किसी हिल स्टेशन से कम नहीं है। मोहंदी प्राचीनकाल में नगर था। इस गढ़ का इतिहास नागपुर के संग्रहालय में है। मोहंदी ग्राम के निवासियों की माने तो इस गढ़ में कीला, सुंदर झरना, महादेव पठार, रानी खोल और लंबी सुरंग है। सुरंग के बारे में कहा जाता है कि 20 से 21 साल पहले जब ग्रामीण यहां पहुंचे, तो सुरंग एक छेद की तरह थी। वहीं ग्रामीणों के प्रयास से आज सुरंग का प्रवेश द्वार 250 से 300 मीटर तक खुल गया है।
अरंड रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर की दूरी पर यह पहाड़ी है। पहाड़ी के ऊपर स्थित गुफानुमा सुरंग में देवी माता चंपई और मां खल्लारी की प्रतिमा है। देवी व शेषनाग की प्रतिमाएं सुरंग में है। ग्रामीणों के अनुसार यह पहाड़ी अरंड-मोहंदी से शुरू होकर दलदली होते हुए गौरखेड़ा तक करीब 18 किलोमीटर के क्षेत्र में विस्तृत है। इतिहासकारों के अनुसार इस पहाड़ी के पठार में कभी सारंगढ़ की रानी विरना का रजवाड़ा था। रानी विरना सन 1476 में सारंगढ़ से यहां आकर बस गई थीं। जिनके पुत्र विषराज और पुत्रवधु देवरानी भी इसी पहाड़ी में रहते थे। पठार में खंडहर बस्ती के अवशेष भी हैं। मान्यताओं के अनुसार रानी विरना के कार्यकाल में ही सुरक्षा के लिहाज से सुरंग को बनाया गया था। यहां प्राचीन गुफा और 18 किलोमीटर से घिरा खूबसूरत पहाड़ी है।
क्या आप कभी चंपई माता मंदिर गए हैं, अगर नहीं गए हैं, तो यहां एक बार जरूर जाएं। यहां पहुंचने पर मंदिर के पहाड़ी से नीचे का सौंदर्य देखते ही बनता है। साथ ही यहां की रहस्मयी गुफाओं को देखकर आप भी दंग रह जाएंगे। फिलहाल इस मंदिर में नवरात्र के पर्व पर जाने वाले भक्तों की भीड़ जरूर लगती है, लेकिन ज्यादातर लोग इस मंदिर से अनजान हैं, जिसके कारण यहां ज्यादा श्रद्धालुओं को नहीं देखा जाता।





