जानिए इस बार चैत्र नवरात्र में क्या है खास, क्या करने से बरसेगी माता की कृपा

नई दिल्ली। हिन्दू धर्म में नवरात्रि का एक विशेष महत्व होता है। 30 मार्च से शुरू होने वाले इस बार के चैत्र नवरात्र में अभिजीत मुहूर्त के साथ सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि का अद्भुत संयोग बन रहा है। जिसमें मां भवानी अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाएंगी। साथ ही भक्तों की कामना पूर्ण करेंगी।
30 मार्च से शुरू होने वाला यह चैत्र नवरात्रि इस बार 9 के बजाए 8 की होगी, क्योंकि तिथियों में परिवर्तन के कारण अष्टमी और नवमी का पर्व एक ही दिन मनाया जाएगा। चैत्र नवरात्रि में 9 देवियों की पूजा के साथ सूर्यदेव की पूजा से विशेष कृपा का संयोग बन रहा है। इसलिए भक्तों को माता के नौ रूपों के साथ सूर्य देव की भी उपासना करनी होगी।
इस साल चैत्र नवरात्रि के दिन कलश स्थापना के लिए 2 दिन शुभ मुहूर्त मिल रहे हैं। एक मुहूर्त सुबह 6 बजकर 13 मिनट से सुबह 10 बजकर 22 मिनट तक है। वही दूसरा मुहूर्त दोपहर 12 बजाकर 1 मिनट से 12 बजकर 50 मिनट तक का है। जो श्रध्दालु घर पर ही देवी के नाम से कलश स्थापित करने वाले हैं, उनके लिए कुशल मुहूर्त है।
नवरात्र के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाएगी। नवरात्र चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 29 मार्च को शाम 4 बजकर 27 मिनट से प्रारम्भ होगी। ये तिथि 30 मार्च को दोपहर 12 बजकर 49 मिनट तक रहेगी। इस स्थिति में उदय तिथि के आधार पर चैत्र नवरात्रि का पर्व का शुभारम्भ 30 मार्च को होगा।
पहले दिन सर्वार्थ सिद्धि योग शाम को 4 बजकर 35 मिनट से अगले दिन सुबह 6 बजकर 12 मिनट तक रहेगा। मान्यता के अनुसार कार्य के लिए यह योग सबसे सफल सिद्धि और शुभ माना जा रहा है। तो चलते अब जानते हैं मां भवानी के वाहन के बारे में कि वो किस पर विराजमान होकर आने वाली हैं।
इस साल चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आएंगे। देवी मां का हाथी पर सवार होकर आना बहुत शुभ माना जाता है। मान्यता के अनुसार माता की ये सवारी शांति और समृद्धि का प्रतिक मानी गई है। नवरात्रि में मां भवानी की सवारी इस बात का संकेत है कि अच्छी बारिश होगी, जो किसानों के फसल के लिए बहुत लाभकारी साबित होगा। इस साल मां दुर्गा सभी को समृद्धि और कुशल जीवन का आशीर्वाद देने जा रही है।
हिन्दू मान्यता के अनुसार चैत्र नवरात्र के प्रारंभ पर ही हिन्दू नववर्ष की शुरुआत होती है। वही भक्तों की मानें तो नवरात्रि के 9 दिन भक्त अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए 9 दिनों का उपवास रखते हैं। साथ ही 9 दोनों तक माता की अलग-अलग 9 रूपों की पूजा-अर्चना करते हैं। जिस माता खुश होकर अपने भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं।