जानिए क्या है मल ट्रांसप्लांट, जिससे बचाई जा रही लोगों की जान

नई दिल्ली। ट्रांसप्लांट… या फेकल ट्रांसप्लांट…. जिसे कहा जाता है… वो एक मेडिकल प्रोसीजर है.. और जैसा कि इसका नाम है मल ट्रांसप्लांट.. तो मतलब है कि इसका संबंध पेट से जुड़ा हो सकता है… वहीं हमारे शरीर की सेहत का भी सीधा संबंध हमारे पेट में मौजुद आंतों यानि कि Gut से होता है… जो हमारे ओवरऑल हेल्थ पर असर डाल सकता है… और मल ट्रांसप्लांट इसी के इलाज से जुड़ा है…

क्या है मल ट्रांसप्लांट
असल में मल ट्रांसप्लांट, एक प्रकार का स्टूल ट्रांसप्लांट होता है.,.. जो एक मेडिकल प्रोसीजर है… इसमें हेल्दी व्यक्ति के मल से लिए गए बैक्टीरिया को एक बीमार व्यक्ति की आंतों में डाला जाता है… जिसका मकसद गट माइक्रोबायोम(Gut Microbiome) को बैलेंस करना और पाचन तंत्र यानि Digestive System को फिर से स्वस्थ बनाना है… यह उन मरीजों के लिए जीवनरक्षक, या जान बचाने वाला साबित हो सकता है, जिन पर एंटीबायोटिक्स असर नहीं कर रही होती है..

क्या मल ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया
दरअसल मल ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया में होता ये है कि हेल्दी डोनर से मल लिया जाता है.. जिसे स्टूल भी कहा जाता है… इसे एकत्र कर उसे फिल्टर और प्रोसेस करके एक लिक्विड फॉर्म में तैयार किया जाता है.. फिर इसे कोलोनो-स्कोपी, एनिमा, कैप्सूल या नेजल ट्यूब के जरिए मरीज की आंतों में डाला जाता है… इस प्रक्रिया से प्राप्तकर्ता की आंतों में स्वस्थ बैक्टीरिया डालकर क्लोस्ट्रीडियम डिफिसाइल या सी. डिफ नामक संक्रमण को नियंत्रित किया जा सकता है। FMT बच्चों और वयस्कों में किया जा सकता है.. शोध से पता चलता है कि मल प्रत्यारोपण निचली आंत में स्वस्थ बैक्टीरिया को बहाल कर सकता है… और सी. डिफ को नियंत्रित करने और इसे वापस आने से रोकने में मदद कर सकता है.. कुछ मामलों में, सी. डिफ को नियंत्रित रखने के लिए FMT एंटीबायोटिक दवाओं से अधिक प्रभावी हो सकता है…

क्या है सी. डिफ
सी. डिफ.. जिसका पुरा नाम क्लॉस्ट्रिडियम डिफिसाइल है… सी. डिफ बुखार, दस्त और ऐंठन का कारण बन सकता है… और संक्रमण के लिए एंटीबायोटिक दवाओं से उपचार के बाद, लोगों को सी. डिफ हो सकता है… जो 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों और पुरानी बीमारी वाले लोगों में गंभीर हो सकता है – यहाँ तक कि घातक भी…

किन बीमारियों में मददगार है मल ट्रांसप्लांट
1. आईबीएस (Irritable Bowel Syndrome), जिसमें पेट में दर्द, सूजन और खराब पाचन की समस्या होती है.
2. अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोहन डिजीज में,जो दोनों आंतों की सूजन से जुड़ी बीमारियां हैं.
3. ऑटिज्म और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर में भी इसकी मदद ली जा सकती है. कुछ रिसर्च के मुताबिक, मल ट्रांसप्लांट ऑटिज्म से जुड़े पाचन संबंधी दिक्कतों को कम कर सकता है.
4. मोटापा और मेटाबॉलिक डिसऑर्डर में भी यह प्रोसीजर फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि आंतों के बैक्टीरिया का संतुलन वजन पर भी असर डाल सकता है.

सबसे ज्यादा किसके लिए है उपयोगी
वहीं, अध्ययनों के अनुसार, क्लोस्ट्रीडियम डिफिसाइल इंफेक्शन से पीड़ित 90% से ज्यादा मरीजों को मल ट्रांसप्लांट से राहत मिली है…वहीं यह उन मरीजों के लिए जीवनरक्षक साबित हो सकता है… जिन पर एंटीबायोटिक्स का असर नहीं होता है… वहीं वैज्ञानिक का मानना हैं कि आने वाले समय में यह पाचन तंत्र और इम्यून सिस्टम से जुड़ी बीमारियों के लिए एक क्रांतिकारी इलाज साबित हो सकता है.,… हालांकि, अन्य बीमारियों के लिए इस तकनीक पर अभी भी रिसर्च जारी है…

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