पाकिस्तान की नस को काटने को तैयार भारत, अफगानिस्तान से मिलाया हाथ..

नई दिल्ली। 15 मई की शाम भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी के बीच हुई टेलीफोन बातचीत ने पाकिस्तान में हलचल मचा दी है. यह संवाद ठीक वैसा ही असर डालता दिख रहा है जैसा कुछ समय पहले भारतीय सैन्य कार्रवाई ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने डाला था. दरअसल, भारत और अफगानिस्तान के बीच दोबारा शुरू हुआ राजनयिक संवाद उस समय सामने आया है जब भारत ने हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद सिंधु जल समझौते को अस्थायी रूप से निलंबित करने का संकेत दिया है. इससे पहले से ही परेशान पाकिस्तान की चिंता और बढ़ गई है, क्योंकि अब भारत अफगानिस्तान में पानी से जुड़ी परियोजनाओं में सक्रिय रूप से सहयोग बढ़ा रहा है.

सूत्रों के अनुसार, जयशंकर और मुत्ताकी के बीच बातचीत में कई विकास परियोजनाओं को पुनः प्रारंभ करने पर सहमति बनी, जिनमें लालंदर का बहुप्रतीक्षित शहतूत बांध भी शामिल है. यह बांध काबुल नदी पर बनना प्रस्तावित है और अफगानिस्तान की राजधानी समेत लगभग 20 लाख लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराएगा. इस परियोजना के तहत भारत 236 मिलियन डॉलर की आर्थिक और तकनीकी सहायता देगा. इसके अलावा, यह बांध करीब 4,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई में भी सहायक होगा. वर्ष 2021 में भारत और अफगानिस्तान के बीच इस परियोजना को लेकर समझौता हुआ था, लेकिन काबुल में तालिबान के सत्ता में आने के बाद इसे रोक दिया गया था. अब भारत द्वारा काबुल में भेजी गई राजनयिक टीम के दौरे से इस परियोजना को गति मिलने की उम्मीद जगी है.

पाकिस्तान की चिंता की एक बड़ी वजह यह है कि काबुल नदी सिंधु बेसिन का हिस्सा है और हिंदूकुश पर्वतों से निकलकर खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में प्रवेश करती है. इस नदी पर यदि बांध बनता है, तो पाकिस्तान की जल आपूर्ति पर असर पड़ सकता है, खासकर तब जब अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच किसी जल संधि का अस्तित्व ही नहीं है. ऐसे में अफगानिस्तान को भारत समर्थित इस परियोजना के लिए पाकिस्तान की अनुमति की आवश्यकता नहीं है.

पाकिस्तान को यह डर और बढ़ गया है जब तालिबान सरकार ने कुनार नदी पर एक और जलविद्युत परियोजना शुरू करने की घोषणा की. यह नदी भी पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले काबुल नदी में मिलती है और सिंधु बेसिन का हिस्सा है. अफगानिस्तान और पाकिस्तान कुल 9 साझा नदी बेसिन में बंधे हुए हैं, जिनमें से अधिकांश पाकिस्तान की जल सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं.

 

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