“चमार” शब्द को ब्रांड बनाने वाले सुधीर राजभर कौन है?

रायपुर। भारत में लोगों को जातिसूचक शब्द से संबोधित करना कोई नया चलन नहीं है…चमार शब्द का इस्तेमाल देश में दलितों के लिए जाता है…  लोगों का ऐसा मानना है कि जातिसूचक शब्द से संबोधित करने की शुरुआत मध्यकालिन भारत के समय से हुई थी.. उसी समय से यह प्रथा लगातार चली आ रही है.. देश के कई इलाकों में जातिसूचक शब्द से संबोधित करने की वजह से लोगों के खिलाफ मुकदमें दर्ज होते हैं या विवाद हो जाता है…और कई बार तो गोलियां भी चल जाती है… लेकिन भारतीय संविधान के अनुसार, किसी व्यक्ति को उसके जाति से पुकारना अपराध की श्रेणी में आता है.. बावजूद लोग इससे बाज़ नहीं आते और इन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं…और सरेआम किसी दलित व्यक्ति को अपमानित करते हैं…और ऐसा ही कुछ हुआ सुधीर राजभर के साथ…,

 

गांव में लोग करते थे अपमानित

बता दें कि चमार शब्द का इस्तेमाल अक्सर उन लोगों के लिए किया जाता है.. जो चमड़े का काम करते हैं.. लेकिन ये धीरे- धीरे ये अन्य दलित समुदाय के लिए भी इस्तेमाल किया जाने लगा..  अब ऐसे में जरुरत थी इस शब्द को वापस सम्मान दिलाने की.. जिसकी जरुरत महसुस की सुधीर राजभर ने… तो चलिए जानते हैं सुधीर राजभर के बारे में…. दरअसल, सुधीर राजभर उत्तर प्रदेश के जौनपुर के रहने वाले हैं… वैसे तो उनका पालन पोषण मुंबई में हुआ है.. मुंबई से ही उन्होंने ड्रॉइंग और पेंटिंग में ग्रेजुएशन की… लेकिन, सुधीर जब गांव जाते थे, तो उन्हें अपमानित करने के लिए जातिसूचक शब्द सुनने को मिलता था…

 

2018 में हुई चमार स्टूडियो की शुरुआत

गांव में अपमानित शब्द सुनने के बाद सुधीर ने जातिसूचक शब्द चमार के प्रति सम्मान वापस लाने के लिए इसे ब्रांड बनाने का फैसला लिया.. चमार जाति के लोग आमतौर पर चमड़े का काम करते हैं…इसलिए सुधीर ने भी चमड़े का काम शुरू किया और चमार नाम का एक ब्रांड बनाया…और साल 2018 में चमार स्टूडियो की शुरुआत की…

 

फुटपाथ से की शुरुवात

सुधीर ने एक interview में बताया था कि  उन्होने मुंबई में अधिकतर दलित मोची के साथ कामकाज की शुरुआत की… वह फुटपाथ पर अपना स्टॉल लगाकर काम करते हैं.. जब धीरे-धीरे चमार स्टूडियो का काम बढ़ने लगा तब उनकी धारावी की कुछ टेनरी में लेदर के क्राफ्ट्समैन से मुलाकात हुई… इसके बाद से उन्होने फैशनेबल हैंड बैग और टोटे बैग बनाना शुरू कर दिया.. और उनके लेदर प्रोडक्ट्स की कीमत 1500 से 6000 रुपए तक है…

 

चमार कोई जाति नहीं, बल्कि एक पेशा है

वहीं उन्होने बाताया कि शुरुआत में वो कपड़े के बैग बनाते थे। फिर उन्होंने चमार शब्द के सम्मान को लोगों के बीच लाने का फैसला किया… जिसके चलते अब चमार स्टूडियो से लोगों को यह समझाने में आसानी हो रही है कि चमार कोई जाति नहीं बल्कि एक पेशा है.. और सुधीर के चमार स्टूडियो के प्रोडक्ट छोटे स्टोर से लेकर कई बड़े शोरूम में उपलब्ध है…वहीं चमार स्टूडियो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी उपलब्ध है..

 

15 करोड़ से ज्यादा है नेटवर्थ

बता दें कि सुधीर के चमार स्टूडियो प्रोडक्ट अमेरिका, जर्मनी और जापान में भी बिकते हैं। अभी तक सुधीर ने चमार स्टूडियो को किसी स्टोर की शक्ल नहीं दी है, लेकिन जल्द ही वह स्टोर खोलने पर विचार कर सकते हैं। इंस्टाग्राम पर चमार स्टूडियो का 45 हजार से अधिक फॉलोअर्स है.. और इस स्टुडियों की नेटवर्थ 15 करोड़ से भी ज्यादा है…

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