छत्तीसगढ़ निकाय चुनाव 2025: महज 7वीं और 12वीं पास भी है महापौर पद के दावेदार
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Chhattisgarh civic elections 2025: छत्तीसगढ़ में नगर निगम चुनावों की सरगर्मी तेज हो गई है, और इस बार महापौर पद के लिए मैदान में उतरे प्रत्याशियों की शैक्षणिक योग्यता में बड़ा अंतर देखा जा रहा है। जहां कुछ प्रत्याशी ग्रेजुएट हैं, वहीं कुछ महज 7वीं और 12वीं पास उम्मीदवार भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
शैक्षणिक योग्यता का समीकरण
प्रदेश के 10 नगर निगमों में महापौर पद के लिए उम्मीदवारों के शैक्षणिक रिकॉर्ड पर नजर डालें तो यह स्पष्ट होता है कि कुछ प्रत्याशी उच्च शिक्षित हैं, जबकि कुछ ने स्कूल स्तर तक की पढ़ाई ही की है। यह अंतर राजनीति में योग्यता की विविधता को दर्शाता है, जिससे यह साफ होता है कि जनता किस आधार पर अपने प्रतिनिधि चुनती है।
नगर निगम वार प्रत्याशियों की शैक्षणिक स्थिति
1- रायपुर: भाजपा प्रत्याशी, मीनल चौबे, ग्रेजुएट,
कांग्रेस उम्मीदवार, दीप्ती दुबे, पोस्ट ग्रेजुएट
2- बिलासपुर: भाजपा प्रत्याशी ग्रेजुएट, पूजा विधानी, पोस्ट ग्रेजुएट
कांग्रेस उम्मीदवार, प्रमोद नायक, पोस्ट ग्रेजुएट
3- दुर्ग: से बीजेपी की अलका बाघमार, कांग्रेस -प्रेम लता पोषण साहू
दोनों प्रमुख दलों के उम्मीदवार ग्रेजुएट
4- राजनांदगांव: भाजपा उम्मीदवार, मधुसुदन यादव, 12वीं पास,
कांग्रेस प्रत्याशी, निखिल दिवेदी, ग्रेजुएट
5- अंबिकापुर: भाजपा, मंजूषा भगत, स्नातक और कांग्रेस, अजय तिर्की, डॉक्टर
6- कोरबा: कांग्रेस उम्मीदवार, उषा तिवारी, बीएससी, भाजपा प्रत्याशी, संजू देवी राजपूत,12वीं पास
7- जगदलपुर: भाजपा प्रत्याशी, संजय पाण्डेय पोस्ट ग्रेजुएट, कांग्रेस उम्मीदवार, मलकीत सिंग गेंदू, 12वीं पास
8- रायगढ़: भाजपा प्रत्याशी, जिवर्धन चौहान, 7वीं पास, कांग्रेस उम्मीदवार, जानकी काटजू, 12वीं पास
9- चिरमिरी- बीजेपी,राम नरेश राय, LLB, कांग्रेस- विनय जायसवाल, डॉक्टर
10- धमतरी- भाजपा से जगदीश रामू, ग्रेजुएट वहीँ कांग्रेस से-विजय गोलछा 9वीं पास
शिक्षा बनाम नेतृत्व क्षमता
यह दिलचस्प है कि राजनीति में शैक्षणिक योग्यता को लेकर कोई तय मानदंड नहीं है। कई बार अनुभव और जनता से जुड़ाव ज्यादा प्रभावी सिद्ध होता है। हालांकि, उच्च शिक्षा एक अतिरिक्त योग्यता हो सकती है, लेकिन जनता का भरोसा और प्रशासनिक क्षमता किसी भी नेता के लिए सबसे महत्वपूर्ण होती है।
जनता के लिए क्या मायने रखता है?
निकाय चुनावों में जनता विकास कार्यों, प्रत्याशियों के ट्रैक रिकॉर्ड और उनकी सुलभता को ज्यादा महत्व देती है। चाहे कोई ग्रेजुएट हो या फिर 7वीं पास, असली चुनौती जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने की होती है।
अब देखना दिलचस्प होगा कि इस बार जनता शिक्षा को प्राथमिकता देती है या फिर जनसेवा और अनुभव को।