बस्तर दशहरा :काटों में झूलकर दी गई दशहरा की अनुमति जाने पूरी कहानी
बस्तर: विश्व प्रसिद्ध ऐतेहासिक बस्तर दशहरे की शुरुआत हो गई है. दशहरे की 3 बड़ी रस्म पाठजात्रा, डेरी गढ़ई और बारसी उतारनी विधि विधान के साथ निभाई गई थी. बुधवार शाम दशहरे की महत्वपूर्ण रस्म काछनगादी विधि परंपरागत तरीके से जगदलपुर शहर के भंगाराम चौक पर निभाई गई. इस साल भी यह रस्म 8 साल की मासूम बच्ची पीहू दास ने कांटे के झूले में झूलकर निभाई. इसके बाद दशहरा पर्व मनाने की अनुमति दी गई. अनुमति के बाद से नवरात्रि और दशहरे पर्व के सभी रस्मों में राजा की मौजूदगी रहेगी. सभी रस्मों को विधि-विधान के साथ निभाया जाएगा. पीहू दास पिछले 3 सालों से इस रस्म को निभाती आ रहीं हैं.
राजपरिवार को दी जाती है अनुमति: इस बारे में बस्तर राजपरिवार सदस्य कमलचंद्र भंजदेव ने बताया कि काछन और रैला देवी दोनों ही राजघराने की बेटियां थी. जिन्होंने आत्मदाह कर लिया था. उनकी आत्मा बस्तर में विराजती है.आज के दिन काछन देवी एक कुंवारी कन्या के ऊपर आती हैं. इसी दिन पितृ पक्ष के आखरी दिन राजपरिवार भी आते हैं, जिन्हें फूल के रूप में अनुमति देती हैं, जिसके बाद रथ राजपरिवार चलाये और जितने देवी देवताओं की पूजा की जाएगी उसमें मुख्य भूमिका माटी पुजारी के हैसियत से उनकी होगी. सभी रस्में नवरात्रि, ज्योति कलश, मावली परघाव, निशा जात्रा, भीतर रैनी, बाहर रैनी, मुरिया दरबार, कुटुंब जात्रा से लेकर डोली विदाई तक निभाएंगे.
देवी देती हैं अनुमति: मान्यताओं के अनुसार आश्विन अमावस्या के दिन काछन देवी, जो रण की देवी कहलाती हैं. पनका जाति की कुंवारी की सवारी करती है. इसके बाद देवी को कांटे के झूले में लिटाकर झुलाया जाता है. इसी दिन बस्तर राजपरिवार, दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी, मांझी चालकी, दशहरा समिति के सदस्य आतिशबाजी और मुंडाबाजा के साथ काछन गुड़ी तक पहुंचते हैं. साथ ही कांटो के झूले पर झूलते हुए देवी से दशहरा पर्व मनाने की अनुमति मांगी जाती है. इसके बाद इशारे से देवी अनुमति प्रदान करती है. अनुमति के बाद राजपरिवार वापस दंतेश्वरी मंदिर लौटता है.