2027 की तैयारी में अखिलेश यादव की नई सियासी चाल, ‘ठाकुर’ नहीं अब ‘पीडीए’ पर फोकस

यूपी: समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव को देखते हुए अपनी रणनीति बदल दी है। अब उनका पूरा फोकस पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (PDAs) पर है। मुलायम सिंह यादव के समय में सपा का मजबूत ठाकुर वोट बैंक अब अखिलेश की प्राथमिकता में नहीं है।

ठाकुर परस्ती का आरोप, आंकड़ों के जरिए सरकार पर हमले

हाल ही में आगरा में अखिलेश यादव ने रामजीलाल सुमन से मुलाकात की और कई जिलों के थानों में ठाकुर दरोगाओं की संख्या का आंकड़ा पेश किया। उन्होंने दावा किया कि यूपी पुलिस में ठाकुरों का वर्चस्व है और यह योगी सरकार की ‘ठाकुर परस्ती’ का उदाहरण है। अखिलेश ने एसटीएफ को ‘स्पेशल ठाकुर फोर्स’ तक कह डाला।

रामजीलाल सुमन की टिप्पणी के बाद जब क्षत्रिय संगठनों ने विरोध किया, तब अखिलेश यादव उनके पक्ष में खुलकर सामने आए। उन्होंने इस मुद्दे को दलित बनाम ठाकुर की दिशा देने की कोशिश की और सरकार पर पक्षपात का आरोप लगाया।

क्यों छोड़ा ठाकुर वोटों का साथ?

2012 में जब सपा सरकार बनी थी, तब पार्टी के 38 ठाकुर विधायक थे और 11 मंत्री भी ठाकुर समाज से थे। लेकिन 2017 में योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद ठाकुर समाज का रुझान पूरी तरह बीजेपी की तरफ हो गया। अब अखिलेश को लगता है कि ठाकुर वोटर दोबारा सपा की ओर नहीं लौटेगा, इसलिए उन्होंने पूरी तरह पीडीए पर ध्यान केंद्रित कर लिया है।

अखलेश अब ब्राह्मण समाज को भी साधने की कोशिश कर रहे हैं। हरिशंकर तिवारी के मुद्दे को उठाकर उन्होंने ठाकुर बनाम ब्राह्मण की राजनीति का रंग देने की कोशिश की। उन्होंने कहा था – “हाता किसे नहीं भाता”, सीधा इशारा योगी और तिवारी के बीच की तनातनी पर था।

90 फीसदी वोटों को साधने की रणनीति

ठाकुर वोटर यूपी में करीब 5% हैं, जबकि दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक मिलाकर 60% से ज्यादा हैं। इसके अलावा ब्राह्मण और गैर-ठाकुर सवर्णों को जोड़ें तो ये आंकड़ा 90% तक पहुंचता है। अखिलेश अब इन्हीं वोटों को एकजुट कर योगी सरकार को घेरने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।

बीजेपी ने 2017 में यादव परस्ती का मुद्दा उठाकर गैर-यादव ओबीसी को अपने पक्ष में किया था। अब अखिलेश उसी तर्ज पर ठाकुर परस्ती का मुद्दा उठाकर पीडीए और ब्राह्मण वोटर्स को साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं। देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी इसका क्या जवाब देती है।

अखिलेश यादव की यह नई सोशल इंजीनियरिंग यूपी की राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकती है। ठाकुरों को पीछे कर पीडीए और ब्राह्मणों को आगे लाकर वे एक नया वोट बैंक तैयार करने में जुटे हैं। यह रणनीति 2027 के चुनावों में कितना असर दिखाएगी, यह आने वाला वक्त बताएगा।

 

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