छत्तीसगढ

बस्तर में 20 साल बाद ‘लाल’ वाला डर खत्म, छोटे-छोटे बच्चों के लिए है ‘गुड न्यूज’

गोली और बम की आवाज से दहल उठने वाले बस्तर के इलाके में अ से आम और क से कबूर की आवाज सुनाई देने लगी है। ये आवाज बस्तर के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से आ रही है। 20 सालों बाद जब यह आवाज सुनाई देने लगी है तो इलाके में बदलाव की बयार बह रही है। नक्सली हिंसा की वजह से दो दशक पहले बंद हुए 41 स्कूल फिर से खुल गए हैं, जिससे सैकड़ों बच्चों को पढ़ाई का मौका मिला है।

बीजापुर में 34 स्कूल खुल गए

यह खुशी की बात है कि बीजापुर जिले में, जो माओवादी हिंसा से सबसे ज़्यादा प्रभावित था, 34 स्कूल फिर से खुल गए हैं। सुकमा के कोंटा क्षेत्र में पांच और नारायणपुर में दो स्कूल फिर से शुरू हुए हैं। ज़्यादातर स्कूल 2005-2006 में माओवादी हिंसा के कारण बंद कर दिए गए थे।

532 छात्रों ने लिया दाखिला

बस्तर डिवीजन के एक शिक्षा विभाग के अधिकारी ने बताया कि इन स्कूलों में पहले ही 532 छात्रों ने दाखिला लिया है, जिनमें से आधी लड़कियां हैं। वहीं, सबसे ज़रूरी बात यह है कि बच्चे वापस आ रहे हैं।

बोर्डिंग स्कूलों में जाते थे बच्चे

इन क्षेत्रों के माता-पिता अपने बच्चों को दूर-दराज के इलाकों में बोर्डिंग स्कूलों में भेजने को मजबूर थे। लेकिन अब, उनके बच्चे अपने गांवों में ही शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे। यह एक सकारात्मक संकेत है कि बस्तर अपने सबसे बुरे दौर से उबर रहा है। दंतेवाड़ा में 2020 में आत्मसमर्पित माओवादियों ने एक स्कूल का पुनर्निर्माण किया था जिसे उन्होंने ध्वस्त कर दिया था।

बंद हुए स्कूल फिर से खुल गए

स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव सिद्धार्थ कोमल परदेशी ने बताया कि नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत के साथ, बस्तर के दूर-दराज के इलाकों में नक्सली हिंसा के कारण वर्षों पहले बंद हुए स्कूल फिर से जीवंत हो गए हैं। हम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की विशेषताओं को लागू करके उन्हें और बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। बाद के शैक्षणिक सत्रों में, हम वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में ऐसे और स्कूल खोलेंगे, जहां सड़कें हैं।

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