एक ऐसा रहस्यमयी शिवलिंग, जिसका जल कहां जाता है किसी को पता नहीं…

बिलासपुर। चलिए आज आपको छत्तीसगढ़ के ऐसे रहस्यमयी शिवलिंग के बारे में बताते हैं..जिसमें जल अर्पित करने पर उसका जल कहां जाता है किसी को पता नहीं चलता.. मानों जैसे गायब हो जाता हो.. मैं बात कर रही हुं रतनपुर में स्थित वृद्धेश्वरनाथ महादेव मंदिर की.. जिसे भक्त ‘बूढ़ा महादेव’ के नाम से जानते हैं…
ये मंदिर न्यायधानी से लगभग 30 किलोमीटर दूर, छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी रतनपुर में स्थित है वृद्धेश्वरनाथ महादेव मंदिर, जिसे श्रद्धालु ‘बूढ़ा महादेव’ के नाम से जानते हैं। यह मंदिर शिवभक्तों की आस्था का केंद्र है और सावन मास में यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान भोलेनाथ को जल अर्पित करने पहुंचते हैं। यह मंदिर अपनी अनेक विशेषताओं और रहस्यों के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल कहां जाता है, यह आज तक कोई नहीं जान सका। शिवमहापुराण में भगवान वृद्धेश्वरनाथ महादेव का उल्लेख मिलता है, जिससे इस मंदिर की पौराणिक महत्ता सिद्ध होती है।
रतनपुर के रामटेकरी के ठीक नीचे स्थित यह शिव मंदिर एक स्वंयभू शिवलिंग का धाम है, जिसकी आकृति अत्यंत विस्मयकारी है। गर्भगृह में स्थित शिवलिंग के तल में जल इस प्रकार दिखाई देता है मानो उसमें आकाशगंगा समाहित हो।
भक्तों का कहना है कि शिवलिंग में अर्पित जल कभी ऊपर नहीं आता और शिवलिंग के अंदर जल तल सदैव एक समान बना रहता है, जो आज भी रहस्य बना हुआ है। रतनपुर, जिसे प्राचीन काल में शिव मंदिरों की अधिकता के कारण ‘लहुरी काशी’ के नाम से जाना जाता था, मां महामाया की नगरी भी है और यहां की धार्मिक महत्ता देशभर में प्रसिद्ध है।
इस मंदिर के पुजारी और ज्योतिषाचार्य पंडित मनोज तिवारी स्वयं भगवान वृद्धेश्वरनाथ के अनन्य भक्त हैं। मंदिर का जीर्णोद्धार 1050 ईस्वी में राजा रत्नदेव द्वारा करवाया गया था, जिससे इसकी ऐतिहासिकता और भी प्रबल होती है। मंदिर से जुड़ी अनेक किवदंतियां भी प्रचलित हैं, जो इसे और अधिक रहस्यमयी बनाती हैं। सावन मास के साथ-साथ महाशिवरात्रि पर भी यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। इस क्षेत्र में अनेक प्राचीन शिवालय हैं, जो इस बात का प्रमाण हैं कि रतनपुर प्राचीन काल से ही शिवभक्ति का प्रमुख केंद्र रहा है। वृद्धेश्वरनाथ महादेव मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का जीवंत प्रतीक भी है





