युवाओं को कर गुजरने का जज्बा देते हैं बाबा साहेब के ये 10 प्रेरक विचार…
6 दिसंबर को भारत में डॉ बी.आर. आम्बेडकर की पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हम भारतीय संविधान के निर्माता और समाज सुधारक डॉ. आम्बेडकर की विरासत को याद करते हैं। उनके संघर्ष और विचार आज भी समाज प्रेरित होता है।
डॉ. आम्बेडकर ने एक समावेशी और लोकतांत्रिक भारत की कल्पना की थी, जहां जातिवाद, असमानता और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ लड़ा जाए। उन्होंने भारतीय समाज को समानता, न्याय और बंधुत्व का पाठ पढ़ाया। उनकी पुण्यतिथि पर उनके विचारों को याद करना उनके योगदान का सम्मान करना है।
डॉ. आम्बेडकर के 10 प्रेरक विचार
1. मैं नहीं चाहता कि भारतीय होने के नाते हमारी वफादारी किसी भी प्रतिस्पर्धी वफादारी से प्रभावित हो, चाहे वह वफादारी हमारे धर्म से, हमारी संस्कृति से या हमारी भाषा से उत्पन्न हो। मैं चाहता हूं कि सभी लोग पहले भारतीय हों, अंत में भारतीय हों और भारतीयों के अलावा कुछ भी न हों।
डॉ. आम्बेडकर का यह विचार हमें एकता और अखंडता का महत्व सिखाता है। वे चाहते थे कि हर भारतीय सबसे पहले अपने देश के प्रति वफादार हो, न कि किसी और चीज के प्रति।
2. कानून और व्यवस्था शरीर की राजनीति की दवा है और जब शरीर की राजनीति बीमार हो जाती है, तो दवा दी जानी चाहिए।
उनका यह विचार कानून की महत्वता को रेखांकित करता है, और यह बताता है कि जब समाज में अन्याय और असमानता बढ़ जाती है, तो इसे सुधारने के लिए कड़े कदम उठाने की आवश्यकता होती है।
3. जाति कोई भौतिक वस्तु नहीं है, यह मन की एक अवस्था है।
डॉ. आम्बेडकर ने जातिवाद को मानसिकता के रूप में देखा और इसे समाप्त करने के लिए मानसिक बदलाव की आवश्यकता जताई।
4. एक महान व्यक्ति एक प्रतिष्ठित व्यक्ति से इस मायने में भिन्न होता है कि वह समाज का सेवक बनने के लिए तैयार रहता है।
उनके अनुसार, महानता समाज की सेवा में है। प्रतिष्ठा केवल खुद के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए काम करने में है।
5. मनुष्य नश्वर हैं। विचार भी ऐसे ही हैं। एक विचार को उतने ही प्रचार की आवश्यकता होती है जितनी एक पौधे को पानी देने की। अन्यथा, दोनों मुरझा कर मर जाएंगे।
डॉ. आम्बेडकर का यह विचार बताता है कि विचारों को फैलाने और बढ़ाने की जरूरत होती है, अन्यथा वे समय के साथ खत्म हो जाते हैं।
6. समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक शासी सिद्धांत के रूप में स्वीकार करना चाहिए।
डॉ. आम्बेडकर समानता को एक आदर्श मानते थे, जिसे समाज में लागू करना जरूरी है।
7. अगर मुझे लगता है कि संविधान का दुरुपयोग हो रहा है, तो मैं इसे जलाने वाला पहला व्यक्ति होऊंगा।
उनका यह विचार संविधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। वे संविधान का सही तरीके से पालन करने के पक्षधर थे।
8. इतिहास दर्शाता है कि जहां नैतिकता और अर्थशास्त्र का टकराव होता है, वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है।
डॉ. आम्बेडकर ने समाज की वास्तविकता को पहचानते हुए यह कहा था कि जब नैतिकता और आर्थिक स्वार्थ में टकराव होता है, तो आर्थिक स्वार्थ की जीत होती है।
9. मैं एक समुदाय की प्रगति को महिलाओं द्वारा हासिल की गई प्रगति की डिग्री से मापता हूं।
उन्होंने हमेशा महिलाओं के अधिकारों की बात की और उन्हें समाज की प्रगति का पैमाना माना।
10. मन की खेती मानव अस्तित्व का अंतिम उद्देश्य होना चाहिए।
डॉ. आम्बेडकर का मानना था कि मानसिक विकास और शिक्षा का उद्देश्य समाज को जागरूक और सशक्त बनाना है।