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सुप्रीम कोर्ट का सहारा को सख्त आदेश, संपत्तियां बेचकर लौटाएं निवेशकों का पैसा

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि 10 साल से अधिक समय बीत चुका है और सहारा समूह ने अदालत के आदेश का पालन नहीं किया है. साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि निवेशकों का पैसा लौटाने के लिए सेबी-सहारा रिफंड खाते में करीब 10,000 करोड़ रुपये जमा करने के लिए समूह पर अपनी संपत्ति बेचने पर कोई प्रतिबंध नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सहारा समूह पर 25,000 करोड़ रुपये जमा कराने के आदेश हैं लेकिन पर्याप्त अवसर मिलने के बावजूद जमा नहीं कराए. न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि 10 वर्ष से अधिक समय बीत चुका है और सहारा समूह ने अदालत के आदेश का पालन नहीं किया है.

पीठ ने कहा, ‘सेबी करीब 10,000 करोड़ रुपये मांग रहा है. आपको इसे जमा कराना होगा. हम एक अलग योजना चाहते हैं, ताकि संपत्ति पारदर्शी तरीके से बेची जा सके. हम इस प्रक्रिया में सेबी को भी शामिल करेंगे. पीठ में न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी भी शामिल हैं.

सहारा समूह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि कंपनी को अपनी संपत्तियां बेचने का अवसर नहीं दिया गया. पीठ ने कहा कि न्यायालय द्वारा 25,000 करोड़ रुपये जमा कराने के आदेश पर शेष 10,000 करोड़ रुपये जमा करने के लिए समूह को अपनी संपत्तियां बेचने पर कोई प्रतिबंध नहीं है.

सिब्बल ने कहा कि इन संपत्तियों को बेचने पर प्रतिबंध होने के कारण कोई भी खरीदने के लिए आगे नहीं आ रहा है. पीठ ने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि आपको संपत्तियां बेचने के लिए उचित अवसर नहीं दिए गए. पीठ ने कहा, ‘इस न्यायालय ने आपको अपनी संपत्तियां बेचने के लिए पर्याप्त अवसर दिए थे. सेबी का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता प्रताप वेणुगोपाल ने पीठ के समक्ष दलील दी. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संपत्ति सर्किल रेट से कम कीमत पर नहीं बेची जानी चाहिए और यदि सर्किल रेट से कम कीमत पर बेची जानी है तो इसके लिए न्यायालय की पूर्व अनुमति लेनी होगी.

सर्वोच्च न्यायालय ने सहारा समूह को स्पष्ट कर दिया कि सेबी करीब 10,000 करोड़ रुपए मांग रहा है और उसे इसे जमा कर देना चाहिए. साथ ही न्यायालय ने समूह से स्पष्ट योजना मांगी. ताकि संपत्ति को पारदर्शी तरीके से बेचा जा सके. वेणुगोपाल ने कहा कि इस बात पर पूरी तरह से अस्पष्टता है कि कंपनी शेष राशि का भुगतान कब करेगी. पीठ ने समूह से कहा कि वह रिकार्ड पर यह बताए कि वह 10,000 करोड़ रुपये की शेष राशि कैसे जमा करने का प्रस्ताव रखता है और वह कौन सी संपत्तियां हैं जिन्हें बेचकर यह राशि जमा कराई जाएगी.

सिब्बल ने सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध किया कि उनके मुवक्किल को पैसे जमा करने की योजना बनाने के लिए कुछ समय दिया जाए. उन्होंने कहा कि अतीत में, उन्होंने एंबी वैली परियोजना सहित कई संपत्तियों को बेचने की कोशिश की, लेकिन सभी प्रयास विफल रहे क्योंकि कोई खरीदार आगे नहीं आया. मामले में दिन भर की सुनवाई के बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई गुरुवार को निर्धारित की है.

अगस्त 2012 में सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक निर्देशों में कहा था कि सहारा समूह की कंपनियां – एसआईआरईसीएल और एसएचआईसीएल – व्यक्तिगत निवेशकों या निवेशकों के समूह से एकत्रित राशि को तीन महीने के भीतर अंशदान राशि प्राप्त होने की तिथि से पुनर्भुगतान की तिथि तक 15 प्रतिशत प्रति वर्ष ब्याज के साथ सेबी को वापस करेगी.

सेबी ने अदालत को बताया था कि सहारा फर्मों ने अब तक 15,455.70 करोड़ रुपये जमा किए हैं, जिन्हें विभिन्न राष्ट्रीयकृत बैंकों की सावधि जमा में निवेश किया गया है और 30 सितंबर, 2020 तक सेबी-सहारा रिफंड खाते में अर्जित ब्याज सहित कुल राशि 22,589.01 करोड़ रुपये है.

बाजार नियामक ने कहा था कि अवमाननाकर्ता सहारा समूह के प्रमुख और उनकी दो कंपनियां – सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड (एसआईआरईसीएल) और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (एसएचआईसीएल) – सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित विभिन्न आदेशों का ‘घोर उल्लंघन’ कर रहे हैं.

 

 

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