आल्हा ने 850 साल पहले बनवाया था यह देवी मंदिर
बुरहानपुर। महाराष्ट्र की सीमा पर बसा बुरहानपुर ऐतिहासिक होने के साथ ही धार्मिक महत्व वाला जिला भी है। महाराष्ट्र सीमा वाले छोर पर जहां ऊंची पहाड़ी पर मां इच्छादेवी का धाम है, वहीं खंडवा की ओर मां आशा देवी का धाम है। इच्छादेवी मंदिर की तरह मां आशा देवी के धाम में भी चैत्र और शारदीय नवरात्र पर आस्था का सैलाब उमड़ता है।
बारहवीं शताब्दी में मंदिर का निर्माण
मंदिर के पुजारी भगवानदास और पुरात्तवविद कमरुद्दीन फलक के अनुसार असरीगढ़ किले के पास पहाड़ी पर विराजीं मां आशा देवी के मंदिर का निर्माण बारहवीं शताब्दी में हुआ था। मान्यता है कि इसका निर्माण सम्राट पृथ्वीराज चौहान के भांजे आल्हा ने कहराया था। मां ने उन्हें इसी स्थान पर साक्षात दर्शन दिए थे। जिसके बाद उन्होंने पहाड़ी पर ही मां के मंदिर का निर्माण कराया था।
माता के इस धाम में न केवल मध्यप्रदेश, बल्कि महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान आदि से भी बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। इनमें सबसे ज्यादा भक्त विवाह और संतान प्राप्ति की इच्छा लेकर आते हैं। पुजारी भगवानदास बताते हैं कि अब तक माता कई दंपतियों की गोद भर चुकी हैं। मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए भक्तों को 116 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।
मनोकामना पूरी होने पर चढ़ाते हैं हरी चूड़ियां
मां के आशीर्वाद से संतान प्राप्ति होने, विवाह होने, कारोबार में वृद्ध होने पर भक्त दोबारा यहां आते हैं और माता को हरी चूड़ियां चढ़ाते हैं। पुजारी के अनुसार यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। सोमवार को भी बड़ी संख्या में दूर-दूर से भक्त मंदिर पहुंचे थे। उन्होंने कतार में लग कर माता के दर्शन किए और पूजन कर मां को अपनी मनोकामना बताई।
मैहर की मां शारदा से भी है आल्हा-ऊदल का संबंध
आशा देवी मंदिर का निर्माण कराने वाले आल्हा और उनके भाई ऊदल का संबंध सतना जिले के त्रिकूट पर्वत पर विराजित मां शारदा से भी है। मान्यता है कि आल्हा-ऊदर चंदेल राजा परमर्दी के सेनापति थे। इस दौरान उन्होंने मैहर के त्रिकूट पर्वत पर काफी समय तक मां की आराधना की थी। जिसके बाद माता ने उन्हें वहां भी दर्शन दिए थे। तभी से वहां मां शारदा का धाम स्थापित है। दोनों भाइयों ने मां की महिमा का वर्णन करने वाली एक किताब भी लिखी थी।