छत्तीसगढ

हाथी की मौत के बाद हटाए जा रहे हुकिंग वाले बिजली तार

अंबिकापुर। हाथियों से साहचर्य का भाव विकसित कर जानमाल की सुरक्षा के लिए सर्वाधिक उपाय करने वाले उत्तर छत्तीसगढ़ में इन दिनों हाथियों के साथ इंसानों की सुरक्षा बड़ी चुनौती बन गई है।

करंट प्रवाहित तार के संपर्क में आने से हाथी की मौत के बाद सरगुजा वनवृत्त के सभी जिलों में विशेष अभियान चलाया जा रहा है। इसके तहत सभी डीएफओ के साथ वन अधिकारी-कर्मचारी हाथी विचरण क्षेत्रों में भ्रमण करने के साथ ही सिंचाई अथवा दूसरे कारणों से हूकिंग वाले तारों को निकालने के काम में लगे हैं। इस कार्य में छत्तीसगढ़ बिजली वितरण कंपनी के मैदानी कर्मचारियों की भी मदद ली जा रही है।

प्रभावित क्षेत्रों में भ्रमण कर असुरक्षित तरीके से झूले और लटके खंभों,बिजली के तारों की जीपीएस मैपिंग के साथ फोटो लेकर बिजली वितरण कंपनी को प्रेषित किया गया है ताकि उसे ऊपर किया जा सके। हाथी विचरण क्षेत्रों में लगातार गांववालों को साथ लेकर जागरूक किया जा रहा है।

शाम चार बजे ही लगा दिया था करंट प्रवाहित तार मुरका गांव के कृषक रामबक्स गोंड के धान के खेत से होकर शनिवार की रात हाथी गुजरे थे। ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था। अगले दिन वन विभाग के अधिकारी- कर्मचारी निगरानी में लगे थे।

शाम चार बजे ही किसान रामबक्स गोंड ने क्लच वायरों को जोड़कर हाईटेंशन बिजली लाइन से जोड़ दिया था। सोमवार को हाथी की मौत हुई तो वह पकड़ा गया। अब उसे पछतावा हो रहा है। उसके पास इस सवाल का भी जबाब नहीं था कि विशालकाय हाथी मरेगा तो जांच होगी।

वह साक्ष्य छिपा भी नहीं पाएगा तो फिर करंट प्रवाहित तार क्यों बिछाया ?

इस पर किसान ने बोला कि उस समय मुझे कुछ नहीं सूझा। हाथी यदि फसल नुकसान भी करता तो मुआवजा की चिंता नहीं थी। हाथी को तो हम लोग गणेश भगवान मानते हैं। उसने अपने लिखित बयान में यह सारी बातें बताई हैं।

जंगल में रोक कर रखना ही एकमात्र उपाय

हाथी-मानव द्वंद को नियंत्रित करने का एकमात्र उपाय हाथियों को जंगल में रोक कर रखना ही है। तमोर पिंगला अभयारण्य इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। जहां 70 से अधिक हाथी वर्ष भर रहते हैं। हाथियों को चारा और पानी चाहिए। बड़े वनक्षेत्र में यह सुविधा मिल गई तो वे आबादी क्षेत्रों की ओर आएंगे ही नहीं लेकिन यह व्यवस्था भी नहीं हो पा रही है। किसी जंगल में पानी के लिए तालाब और स्टॉप डेम बनाया गया है तो हाथियों के पसंदीदा चारा की व्यवस्था नहीं है। यही कारण है कि धान और गन्ना के सीजन में हाथी आबादी क्षेत्रों के आसपास विचरण करने लगते हैं।

ये गतिविधियां होती थी संचालित

कुछ वर्षों पहले तक वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारी प्रभावित क्षेत्रों में जाकर चौपाल लगाते थे। हाथियों से बचाव की जानकारी देकर उन्हें आश्वस्त करते थे कि यदि हाथियों ने नुकसान पहुंचाया तो शत प्रतिशत मुआवजा दिया जाएगा। फसल सुरक्षा के लिए खेतों में नहीं जाने,किसी भी प्रकार का तार नहीं लगाने, अत्यधिक मात्रा में कीटनाशक का छिड़काव नहीं करने की भी समझाइश दी जाती थी। हाथियों के व्यवहार के अनुरूप किस सीजन में किस क्षेत्र में कितने हाथियों का मूवमेंट होता है,इसकी जानकारी मौखिक और लिखित रूप से देकर यह विश्वास दिलाते थे कि वन विभाग प्रभावित क्षेत्र के लोगों के सुख दुख में साथ खड़ा है। आज स्थिति बदल गई है। आज प्रभावित क्षेत्र के लोगों को लगने लगा है कि इस समस्या से राहत देने कोई उनके साथ नहीं है।

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