छत्तीसगढ

सुकमा जिले के सरकारी फंड से क्यों ख़रीदे गये वाद्ययंत्र ??

सुकमा | नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में सरकारी राशि के दुरुपयोग का गंभीर मामला सामने आया है. जिम्मेदार अफसरों ने सप्लायर से मिलकर आदिवासी आश्रम शालाओं में 14 करोड़ रुपए की लागत से वाद्य यंत्रों की खरीदी की है. जबकि जिले के अधिकांश आश्रम शालाओं में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. यहां बच्चों को साफ पानी , शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं. आश्रम शालाओं की स्थिति बदतर होती जा रही है, लेकिन सरकारी राशि का उपयोग उन समस्याओं को हल करने के बजाय वाद्य यंत्रों की खरीद में किया गया. अब ये 14 करोड़ रुपये की भारी रकम से खरीदे गए वाद्य यंत्र, आश्रमों में धूल खा रहे हैं. न तो ये यंत्र बच्चों के लिए उपयोगी साबित हुए, न ही इन्हें सही तरीके से इस्तेमाल किया गया.

ऐसे समझिए पूरा मामला

प्राप्त जानकारी के अनुसार आदिवासी विकास विभाग सुकमा द्वारा साल 2022-23 में जिले के आश्रम शालाओं में शिक्षा के साथ आदिवासी बच्चों को कौशल ज्ञान देने के उद्देश्य से वाद्य यंत्रों की खरीदी की गई. हालांकि यह पूरी खरीदी उद्देश्यों की पूर्ति न होकर अफसरों और सप्लायर के कमीशन तक ही सीमित रह गयी. इसके लिए केन्द्र सरकार से मिले करीब 14 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए.

कहीं अलमारी में बंद हैं तो कहीं स्टोर रूम में धूल खा रहे हैं

14 करोड़ की लागत से खरीदे गए वाद्य यंत्र कहीं अलमारी में बंद हैं तो कहीं स्टोर रूम में धूल खा रहे हैं. सुकमा जिले के  नक्सल प्रभावित गांव मेहता में संचालित आश्रम में वाद्य यंत्रों को अलमारी में बंद कर रखा गया है. अधीक्षक का कहना है कि आश्रम में वाद्य यंत्रों को बजाने या सिखाने के लिए जानकार लोग मौजूद नहीं हैं. बिना मांग के विभाग द्वारा सप्लाई की गई है. इसलिए इसे अलमारी में बंद कर रखा गया है. वहीं सुकमा ब्लॉक के गोंडेरास आश्रम शाला में दिए गए वाद्य यंत्र का भी यही हाल था. यहां स्टोर रूम में धूल खाता केवल हारमोनियम नजर आया. अन्य वाद्य यंत्र पेटी में बंद कर दिए गए हैं.

टूटे शौचालय, पानी की सुविधा तक नहीं

जिले के अधिकांश आश्रम-शालाओं में बच्चों के लिए जरूरी सुविधाएं जैसे कि स्वच्छ शौचालय, पीने का पानी, कक्षाओं में पर्याप्त बैठने की व्यवस्था और शिक्षा के लिए बुनियादी ढांचा नदारद है. कहीं दरवाजे टूटे हैं, तो कहीं शौचालय में पानी की सुविधा तक नहीं है. बदबू से बजबजाते शौचालयों की मानो कई महीनों से सफाई तक नहीं की गई है. ऐसे हालातों में बच्चे आश्रमों में रहकर शिक्षा ग्रहण करने को मजबूर हैं.

शिक्षकों का टोटा, जुगाड़ से हो रही पढ़ाई

प्रदेश सरकार द्वारा आदिवासी बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के उद्देश्य से जिले के ट्राइबल इलाकों में आश्रम-शालाओं का संचालन किया जा रहा है. जहां बच्चों को आवास और भोजन की सुविधा भी देती हैं, जिससे उन्हें घर से दूर रहकर भी शिक्षा प्राप्त करने में मदद मिलती है. लेकिन इन आश्रम शालाओं में शिक्षकों का बड़ा टोटा है. सुकमा जिले के मुतोड़ी बालक आश्रम में एक शिक्षक के भरोसे 70 बच्चों का भविष्य निर्भर है. ये मात्र मुतोड़ी आश्रम की समस्या नहीं है, बल्कि जिले में संचालित सभी आश्रमों में शिक्षकों की भारी कमी है. आश्रम शाअलों के सेटअप के अनुरूप यहां शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गई है. जिससे आदिवासी बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है.

जिम्मेदारों का क्या कहना है?

आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त शरतचंद्र शुक्ला ने बताया कि साल 2021-22 में आश्रम शालाओं में वाद्य यंत्रों की आपूर्ति की गई है. आदिवासी बच्चों को शिक्षा के साथ कौशल की दिशा में जोड़ने का प्रयास किया गया है. साथ ही बच्चों के मनोरंजन से जोड़ना भी है. निरीक्षण के दौरान कुछ शालाओं में इसकी उपयोगिता दिखती है. जिन शालाओं में इसका उपयोग नहीं किया जा रहा है उन्हें निर्देशित किया जाएगा. जहां-जहां आश्रम शालाओं में बुनियादी सुविधाओं की जरूरत है, वहां एक्शन प्लान बनाकर उनके मरम्मत के लिए वार्षिक कार्ययोजना बनी है.

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