छत्तीसगढ

छत्‍तीसगढ़ उपचुनाव में सत्तापक्ष की जीत का टूट चुका है मिथक…

रायपुर। छत्‍तीसगढ़ में एक बार फिर रायपुर-दक्षिण विधानसभा सीट पर उपचुनाव की घोषणा हो चुकी है। 13 नवंबर को मतदान और 23 नवंबर को मतगणना होगी। पूर्व शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के रायपुर सांसद बनने के बाद से यह सीट खाली है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरकार में यह पहला उपचुनाव है। पिछले वर्षों में राज्य में हुए तमाम उपचुनावों में ज्यादातर में सत्तापक्ष की ही जीत होती रही है। हालांकि इसके दो अपवाद भी हैं।

2006 में पूर्ववर्ती भाजपा की डा. रमन सिंह सरकार के दौरान कोटा में उपचुनाव हुआ था। इस चुनाव में कांग्रेस की रेणु जोगी ने जीत दर्ज की थी। विधानसभा के अध्यक्ष रहे पं. राजेंद्र प्रसाद शुक्ल के निधन के बाद कोटा की सीट खाली हुई थी। इसी तरह रमन सिंह की ही सरकार में 2009 में वैशाली नगर विधानसभा सीट में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के भजन सिंह निरंकारी की जीत हुई थी।

उपचुनाव में सत्तापक्ष की ही जीत का मिथक दो बार टूट चुका है और एक बार फिर कांग्रेस के सामने रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट में भाजपा के अभेद्य किला को भेद्य करने के साथ-साथ सत्तापक्ष की ही उपचुनाव में जीत के मिथक को तोड़ने की चुनौती है। वहीं भाजपा को अपने किला को बरकरार रखने की चुनौती है।

भूपेश सरकार में हुए सभी पांच उपचुनावों में हुई थी कांग्रेस की जीत

पूर्ववर्ती कांग्रेस की भूपेश सरकार में प्रदेश में पांच उपचुनाव हुए थे। इनमें सभी में कांग्रेस की जीत हुई थी। इनमें दंतेवाड़ा, चित्रकोट, मरवाही, खैरागढ़ और भानुप्रतापपुर का उपचुनाव शामिल है। उस समय भाजपा की सरकार थी और कांग्रेस की जीत हुई थी। भूपेश सरकार में पहला उपचुनाव दंतेवाड़ा से भाजपा विधायक भीमा मंडावी की हत्या के बाद हुआ था।

इसी तरह दीपक बैज के सांसद चुन लिए जाने पर चित्रकोट में नया विधायक चुना गया था। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन के बाद मरवाही विधानसभा में हुए उपचुनाव में कांग्रेस की जीत हुई थी।खैरागढ़ की सीट से देवव्रत सिंह के निधन के बाद भी कांग्रेस जीती थी और इसी तरह कांग्रेस विधायक और विधानसभा के उपाध्यक्ष रहे मनोज मंडावी के निधन के बाद मंडावी की पत्नी सावित्री मंडावी विधायक बनी थीं। सावित्री ने शिक्षक की नौकरी से इस्तीफा दिया था।

कुछ रोचक उपचुनाव और जीत

जोगी के लिए भाजपा के विधायक ने छोड़ी सीट

राज्य में अब तक चार मुख्यमंत्री हुए। राज्य का गठन नवंबर 2000 में हुआ। कांग्रेस से अजीत जोगी को मुख्यमंत्री बनाया गया। जोगी जब सीएम बने तब वह विधायक नहीं थे। जोगी के लिए मरवाही से भाजपा के विधायक रामदयाल उइके ने अपनी सीट छोड़ दी थी। इसके बाद उइके कांग्रेस में ही रहे, लेकिन 2018 के चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे।

उपचुनाव से ही विधायक बने रमन

इसी तरह 2003 में जब भाजपा को प्रदेश में बहुमत मिला तो डा. रमन सिंह को मुख्यमंत्री बनाने पर सहमति बनी। डा. रमन भी उस समय सांसद थे। उनके लिए प्रदीप गांधी ने डोंगरगांव की सीट छोड़ी थी।

हादसों के उपचुनाव

बालोद और केशकाल सीट पर हुए उपचुनाव का एक संयोग भाजपा की कार्यसमिति से जुड़ा है। बालोद के तत्कालीन विधायक मदन साहू भाजपा की कार्यसमिति में शामिल होने के लिए पहुंचे थे। बैठक खत्म होने के बाद उनकी तबीयत बिगड़ी। हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। बाद में उनकी पत्नी कुमारी साहू जीती थीं। इसी तरह केशकाल के विधायक महेश बघेल का निधन कार्यसमिति से लौटने के दौरान एक हादसे में हुआ था। इसी तरह भटगांव के विधायक रविशंकर त्रिपाठी का निधन सड़क हादसे में हुआ था।

चुनाव में हारे, उपचुनाव में जीते सिन्हा

मालखरौदा सीट जो अभी अस्तित्व में नहीं है। इस सीट से भाजपा नेता निर्मल सिन्हा पहले चुनाव हारे, फिर चुनाव याचिका लगाई। इसमें तत्कालीन विधायक लालसाय खूंटे की सदस्यता खत्म हुई। इसके बाद उपचुनाव हुए और निर्मल सिन्हा की जीत हुई।

खैरागढ़ में दो बार उपचुनाव

खैरागढ़ में अब तक दो बार उपचुनाव हो चुके हैं। 2003 में इस सीट से देवव्रत सिंह चुनाव जीते थे। बाद में जब प्रदीप गांधी की सदस्यता चली गई, तब राजनांदगांव लोकसभा के लिए उपचुनाव हुए। इसमें कांग्रेस ने देवव्रत सिंह को प्रत्याशी बनाया। देवव्रत सिंह इस चुनाव में जीते, लेकिन खैरागढ़ सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा से कोमल जंघेल जीते थे। 2022 में देवव्रत सिंह के निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस से यशोदा वर्मा जीती थीं।

छत्तीसगढ़ में अब तक हुए विधानसभा के उपचुनाव

मरवाहीः 2001 (सत्ता पक्ष)

अजीत जोगी (कांग्रेस) 71,211

अमरसिंह खुसरो (भाजपा) 20,453

डोंगरगांवः 2004 (सत्ता पक्ष)

डा. रमन सिंह (भाजपा) 42,115

गीतादेवी सिंह (कांग्रेस) 32,004

अकलतराः 2004 (सत्ता पक्ष)

छतराम देवांगन (भाजपा) 39,859

डा. राकेश कुमार सिंह (कांग्रेस) 29,187

कोटाः 2006 (विपक्ष)

रेणु जोगी (कांग्रेस) 59,465

ठाकुर भूपेंद्र सिंह (भाजपा) 35,995

मालखरौदाः 2007 (सत्ता पक्ष)

निर्मल सिन्हा (भाजपा) 45,576

मोहन मणि (कांग्रेस) 23,589

खैरागढ़ : 2007 (सत्ता पक्ष)

कोमल जंघेल (भाजपा) 57,949

पद्मा देवव्रत सिंह (कांग्रेस) 41,962

केशकालः 2008 (सत्ता पक्ष)

सेवक राम नेताम (भाजपा) 58,362

बुधसेन मरकाम (कांग्रेस) 36,476

वैशालीनगरः 2009 (विपक्ष)

भजन सिंह निरंकारी (कांग्रेस) 47,225

जागेश्वर साहू (भाजपा) 45,997

भटगांवः 2010 (सत्ता पक्ष)

रजनी त्रिपाठी (भाजपा) 74,098

उमेश्वर शरण सिंहदेव ( कांग्रेस) 39,236

बालोद : 2011 (सत्ता पक्ष)

कुमारी मदन साहू (भाजपा) 64,185

मोहन पटेल (भाजपा) 54,520

अंतागढ़ः 2014 (सत्ता पक्ष)

भोज राज नाग (भाजपा) 51,530

रूपधर पुडो (सीपीआइ) 12,086

चित्रकोटः 2019 (सत्ता पक्ष)

राजमन बेंजाम (कांग्रेस) 62,097

लच्छुराम कश्यप (भाजपा) 44,235

दंतेवाड़ाः2019 (सत्ता पक्ष)

देवती कर्मा (कांग्रेस) 50,028

ओजस्वी मंडावी (भाजपा) 38,836

मरवाही: 2020(सत्ता पक्ष)

डा. केके ध्रुव(कांग्रेस) 83, 372

डा. गंभीर सिंह(भाजपा) 38, 132

खैरागढ़: 2022 (सत्ता पक्ष)

यशोदा वर्मा (कांग्रेस) 87,879

कोमल जंघेल (भाजपा) 67,703

भानुप्रतापपुर: 2022 (सत्ता पक्ष)

सावित्री मंडावी(कांग्रेस) 65,479

ब्रह्मानंद नेताम(भाजपा) 44,308

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