छत्तीसगढ

बस्तर में टीचर की हत्या के बाद से डर के साये में जी रहे शिक्षक, कलेक्टर से लगाई सुरक्षा की गुहार

बस्तर जिले के अंदुरुनी इलाको में आदिवासी बच्चों से लेकर हर तबके के बच्चों के लिए शिक्षा की लौ जलाने वाले शिक्षकों को अपनी जान को लेकर काफी खतरा महसूस हो रहा है, जिसका कारण है कि बीते दिनों नक्सलियों के द्वारा एक शिक्षा दूत की हत्या होना। इसे लेकर शिक्षकों ने कलेक्टर से गुहार लगाई है। बताया जा रहा है कि जान जोखिम में डालकर धुर नक्सल प्रभावित आदिवासी इलाकों के बच्चों को शिक्षित-दीक्षित कर रहे शिक्षा दूत अब नक्सलियों के निशाने पर हैं।

जिले के अंदरुनी इलाकों तक जहां प्रशासन की भी पहुंच नहीं है, वहां रहकर बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगाने वाले ये शिक्षा दूत दरअसल स्थानीय शिक्षित बेरोजगार हैं, जिन्हें 11 हजार रुपये मासिक मानदेय पर यह जॉब ऑफर किया गया है। 2005 से जान जोखिम में डालकर अपनी अमूल्य सेवाएं दे रहे इन शिक्षा दूतों पर नक्सलियों ने नजर टेढ़ी कर ली है और यही इनकी चिंता का सबसे बड़ा सबब बन गया है।

नक्सल प्रभावित पंचायत सिलगेर के सरपंच कोरसा सन्नू कहते हैं कि शिक्षा दूतों ने जो बीड़ा उठाया है, वह निःसंदेह मानवता की सेवा कहा जाएगा, लेकिन नक्सली अब इनकी जान के दुश्मन बन चुके हैं। मुखबिरी का आरोप लगाते हुए इनकी हत्याएं की जा रही हैं। एक के बाद एक तीन लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया है। परिजनों को भी धमकियां मिल रही हैं।

10 वीं और 12वीं तक की पढ़ाई पूरी कर रोजगार की तलाश कर रहे आदिवासी युवाओं को जब शिक्षा दूत बनाया गया तो उन्हें गांव में ही रहकर यह काम करने का बेहतर अवसर लगा। अब जब जान खतरे में है तो वे सोच में पड़ गए हैं। कलेक्टोरेट तक पहुंचने के लिए संभवतः मानदेय को बहाना इसलिए बनाया गया, क्योंकि यदि वे प्रशासन से नक्सलियों की सीधी शिकायत करते तो तालाब में रहकर मगरमच्छ से बैर जैसी स्थिति बनती। बहरहाल इस मसले को शासन-प्रशासन किस तरह से हैंडल करेगा, यह देखने लायक बात होगी।

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