छत्तीसगढ

ड्रॉप आउट बच्चे को लेकर जिला कलेक्टर सख्त, DEO को दिए ये निर्देश…

छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार में राइट टू एजुकेशन (RTE) सीट पर एडमिशन लेने के बाद बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल छोड़ रहे हैं. ड्रॉप आउट का साल दर साल यह आंकड़ा बढ़ता जा रहा है. इस बीच बलौदा बाजार कलेक्टर दीपक सोनी ने इस समस्या के समाधान के लिए शिक्षा अधिकारी सहित पूरे जिले के 110 अधिकारियों को बड़ी जिम्मेदारी दी है.

राइट टू एजुकेशन के तहत बच्चों को दिया जाता है निशुल्क प्रवेश

भारत सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चे के लिए 2010 में शिक्षा का अधिकार कानून लागू किया था. इसके बाद निजी स्कूलों में  राइट टू एजुकेशन के तहत बच्चों को निशुल्क प्रवेश दिया जाता है. आशिक रूप से कमजोर आय वर्ग के परिवारों के बच्चों के शिक्षा का खर्च सरकार वहन कर रही. हालांकि पिछले कुछ वर्षों में देखने को मिल रहा है कि बच्चे एडमिशन के बाद बड़ी संख्या में स्कूल छोड़कर वापस सरकारी स्कूल या पढ़ाई छोड़ दिए हैं.

इस समस्या के सामने आने के बाद बलौदा बाजार कलेक्टर दीपक सोनी ने स्कूल शिक्षा विभाग सहित सभी विभागों के जिला और ब्लॉक के 110 अधिकारियों को मेंटोर नियुक्त किए हैं. इन अधिकारियों का काम जहां एक तरफ शिक्षा का अधिकार कानून का पालन कराना होगा. वहीं दूसरी ओर बच्चे के अभिभावक और स्कूल के बीच समन्वय स्थापित कर ड्रॉप आउट की स्थिति को समाप्त करना है.

25 फीसदी सीट पर देना होता है प्रवेश 

दरअसल, शिक्षा का अधिकार एक कानून है, जिसे 2009 में अधिनियम बनाकर लागू किया गया था. 2010 से जब स्कूलों में प्रवेश शुरू हुआ तो प्रवेशित कक्षा की सीटों में से 25 फीसदी सीटें गरीब बच्चों के लिए निर्धारित की गई थी. असल में इस कानून को बनाए जाने का मुख्य मकसद अमीरी और गरीबी की खाई को और जातिवाद से बच्चों के मन में पड़ने वाले प्रभाव को खत्म करना था, लेकिन इस महत्वपूर्ण कानून का लाभ लेने के कुछ समय बाद ही बच्चों ने स्कूल छोड़ना शुरू कर दिया.

1952 सीटें हैं आरक्षित

बता दें कि बलौदा बाजार जिले में निजी स्कूलों की संख्या 221 है, जहां शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू है. इन स्कूलों में 1952 सीटें आर्थिक रूप से कमजोर तबके के बच्चों के लिए आरक्षित हैं. जिसपर हर साल बच्चे प्रवेश ले रहे हैं. अगर पढ़ाई बीच में छोड़ने की बात करें तो यह आंकड़ा साल दर साल बढ़ता जा रहा है. बलौदा बाजार जिले के स्कूलों में आरटीई के तहत शिक्षा सत्र 2020- 21 में प्रवेश लेने वाले 521 बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया. इसी तरह 2021- 22 में 924 और 2022- 23 में 1033 बच्चों ने स्कूल छोड़ा है. इस तरह से बच्चों के स्कूल छोड़ने के प्रतिशत की बात की जाए तो 2020- 21 में जो आंकड़ा 26.69 फीसदी था वो 2021- 22 में बढ़कर 47.33 फीसदी और 2022- 23 में बढ़कर 52.92 फीसदी हो गया है.

12वीं तक की शिक्षा मुफ्त 

शिक्षा का अधिकार अधिनियम में प्रवेश लेने वाले बच्चों को 12वीं तक की शिक्षा मुफ्त में दी जाती है. आर्थिक रूप से कमजोर तबके के बच्चों को पढ़ाने के लिए निजी स्कूलों की फीस सरकार वहन करती है. इसके लिए सरकार की तरफ से प्राइमरी क्लास के लिए 7000 रुपये, मिडिल क्लास के लिए 11400 रुपये, जबकि हाई और हायर सेकेंडरी क्लास के लिए 15000 रुपए निर्धारित की गई है. साथ ही बच्चों की ड्रेस के लिए 540 रुपये और कक्षा पहली से दसवीं तक की किताबें सरकार की तरफ से निशुल्क दी जाती हैं.

कलेक्टर, एसपी भी निभाएंगे मेंटोर की भूमिका 

दरअसल, अबतक आरटीई के तहत प्रवेश दिलाने की जिम्मेदारी शिक्षा विभाग की होती थी. निजी स्कूलों में प्रवेश पाने वाले बच्चों की पढ़ाई बीच में छोड़ने के कई कारणों के सामने आने के बाद प्रशासन हरकत में है.

जिला शिक्षा अधिकारी हिमांशु भारतीय ने बताया कि शिक्षा सचिव सिध्दार्थ कोमल सिंह परदेशी ने ड्रॉप आउट को गंभीरता से लेते हुए तत्काल प्रभाव से ड्रॉप आउट की स्थिति को समाप्त करने के लिए निर्देश दिए है.

110 अधिकारियों को किया गया मेंटोर नियुक्त

इसके बाद कलेक्टर दीपक सोनी ने आरटीई के पालन के लिए सभी विभागों को इससे जोड़ा है. कलेक्टर, एसपी, जिला पंचायत की सीईओ, जिला शिक्षा अधिकारी, एसडीएम, तहसीलदारों सहित 110 जिला और ब्लॉक अधिकारियों को मेंटोर नियुक्त किया गया है. ये सभी मेंटोर बच्चों के पालक के रूप में होंगे. इनका काम निजी स्कूलों में प्रवेश सुनिश्चित करने के साथ ही विद्यार्थियों के अभिभावकों के संपर्क में रहना और स्कूल नहीं जाने पर बच्चों से बात करने के अलावा अभिभावकों और विद्यालयों में समन्वय स्थापित कर असमानता के व्यवहार पर चर्चा करना है.

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