मध्यप्रदेश

बस्ती में धूल फांक रहा मौर्यकालीन स्तंभ, नवाबों ने बना दिया था लैंप पोस्ट, अब राज्य संग्रहालय में सहेजा जाएगा..

भोपाल। शहर के बाग उमराव दूल्हा में स्थित मौर्य युग (325181 ईसा पूर्व) का प्राचीन स्तंभ जल्दी ही राज्य संग्रहालय या फिर किसी सुरक्षित पार्क में स्थानांतरित किया जाएगा। करीब 20 फीट ऊंचे पत्थर के इस स्तंभ को नवाब शाहजहां बेगम के दौर में सांची या विदिशा से लाया गया था। इसे नवाब खानदान के लिए बने बाग उमराव दूल्हा के बीचोंबीच लैंप पोस्ट के तौर पर स्थापित किया गया था।

सघन बस्ती में हो रहा बदहाल

नवाबों का दौर खत्म होने के बाद अब यह प्राचीन स्तंभ दुकानों और घरों से घिरी बस्ती में एक व्यस्त और संकरी सड़क के बीच में खड़ा है। इसमें खरोचें और गड्ढे हैं और इसके चारों ओर नीचे से ऊपर तक तार के निशान हैं। इसकी सतह धूल से ढंकी हुई है और इसके आधार पर एक छोटा, उठा हुआ पत्थर का चबूतरा है, जिसका उपयोग स्थानीय निवासी बैठकर धूप सेंकने और गपशप करने के लिए करते हैं।
20 फीट ऊंचे इस स्तंभ के शीर्ष के पास लोहे के हुक लगे हुए हैं जो इसके लैंप पोस्ट के लिए इस्तेमाल होने की गवाही देते हैं। इसके शीर्ष पर एक उल्टा कमल और एक पत्ती की आकृति बनी हुई है।

पहले भी हुए स्थानांतरित करने के प्रयास

पुरातत्व, अभिलेखागार और संग्रहालय संचालनालय के पुरातत्वविद आशुतोष उपरीत का कहना है कि इस स्तंभ को स्थानांतरित करने के प्रयास पहले भी हुए हैं। लेकिन स्थानीय निवासियों के विरोध की वजह से ऐसा हो नहीं पाया। स्थानीय लोग इस स्तंभ को अपने इलाके के गौरव और नवाब के उपहार के रूप में देखते हैं।
करीब दो साल पहले इसे स्थानांतरित करने के लिए जिला कलेक्टर को औपचारिक आदेश जारी किया गया था, लेकिन विरोध के कारण ऐसा नहीं हो सका। हम क्षेत्र के कुछ समझदार और प्रभावशाली निवासियों के संपर्क में हैं और उन्हें आश्वस्त किया है कि स्तंभ को स्थानांतरित करना इसके संरक्षण का सबसे अच्छा तरीका होगा।
हमने उन्हें बताया कि किसी भी दिन कोई वाहन खंभे से टकरा जाएगा तो यह स्तंभ टूट सकता है। उपरीत के मुताबिक पुरातत्व संचालनालय की योजना इसे राज्य संग्रहालय या किसी खुली जगह पर स्थापित करने की है, जहां उचित बाड़ लगाकर इसका संरक्षण किया जा सके।

140-150 साल पहले लाए थे

पुरातत्वविद पूजा सक्सेना का कहना है कि 1880 के आसपास भोपाल की शासक शाहजहां बेगम के आदेश पर इस स्तंभ को रियासत की किसी उखाड़कर शहर में लाया गया था। स्तंभ के दंड पर ठोकने या तोड़ने के निशान मिलते हैं, जिससे पता चलता है कि यह कहीं से उखाड़कर लाया गया था। इसे एक बगीचे के बीच में स्थापित किया गया था, जहां बाद में घर और सड़क बन गई। इस स्तंभ को कहां से और क्यों लाया गया था, इसकी प्रामाणिक जानकारी किसी को नहीं है। कई लोगों का मानना है कि यह स्तंभ सांची अथवा विदिशा से लाकर यहां स्थापित किया गया था।

पुरातात्विक धरोहर

इतिहासकारों का कहना है कि स्तंभ पर शंख लिपि में कुछ लिखा हुआ है। जो पांचवीं शताब्दी तक देश में प्रचलित लिपि थी। इस लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। यह स्तंभ तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का अशोक काल का है। ऐसे स्तंभ उस काल में व्यापारिक मार्गों में लगाए जाते थे। भीमबेटका के शैल आश्रयों , सांची स्तूप और बेस नगर के स्तंभ के साथ यह स्तंभ भी मध्य प्रदेश के सबसे पुराने पुरातात्विक स्मारकों में से एक है।
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