अपराजिता विधेयक संवैधानिक रूप से अवैध’, SC के पूर्व जज का दावा, CM ममता पर साधा निशाना
कोलकाता: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने रेप के दोषियों को मौत की सजा देने के लिए विधानसभा में विधेयक पारित किया है. यह बिल कोलकाता राजभवन के जरिए राष्ट्रपति भवन पहुंच चुका है. इस बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज अशोक गांगुली ने दावा किया है कि अपराजिता विधेयक पूरी तरह से अवैध है और इसका कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने कहा, “मैंने पूरा विधेयक नहीं देखा है. हालांकि, विधेयक में रेप और हत्या के लिए एकमात्र सजा के रूप में मृत्युदंड का प्रावधान है. यह संवैधानिक रूप से त्रुटिपूर्ण है. 41 साल पहले एक मामले में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने कहा था कि जिन मामलों में केवल मृत्युदंड है, उन केस में सजा देना संवैधानिक रूप से अवैध है.
लोगों का ध्यान हटाने के लिए लाया गया है बिल
पूर्व जज का दावा है कि यह बिल आरजी कर रेप और हत्या की मुख्य घटना से लोगों का ध्यान हटाने के लिए लाया गया है. पूर्व जज ने ‘अपराजिता विधेयक’ की संवैधानिक अमान्यता के बारे में भी बताया. उन्होंने कहा, “पुरानी दंड संहिता की धारा 303 में मृत्युदंड का कानून था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पिता ने जज रहते हुए एक मामले में उस कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. यह रिकॉर्ड में दर्ज है.”
उन्होंने कहा कि जब जजों के पास विवेकाधिकार नहीं होता तो वह मृत्युदंड नहीं देते. वह आजीवन कारावास की सजा देते हैं तो सजा का आदेश भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है. भारतीय न्याय संहिता (BNS) का हवाला देते हुए अशोक गांगुली ने आगे कहा कि बीएनएस अधिनियम में मृत्युदंड और आजीवन कारावास या जुर्माने का उल्लेख है.
खुद को प्रगतिशील दिखाने की कोशिश कर रही हैं ममता
उन्होंने कहा कि वह (मुख्यमंत्री) खुद को प्रगतिशील दिखाने की कोशिश कर रही हैं, क्योंकि आरजी कर का मुद्दा सार्वजनिक प्वेटफॉर्म पर है. वह इस दृष्टिकोण को बदलने की कोशिश कर रही हैं. अशोक गांगुली ने यह भी कहा, “दुनिया के 135 सभ्य देशों में अब मृत्युदंड की व्यवस्था नहीं है. मृत्युदंड एक सामंती दंड प्रणाली है. वे उस प्रणाली को वापस लाकर खुद को प्रगतिशील दिखाने की कोशिश कर रही हैं.”
मुख्यमंत्री से पूछे सवाल?
इसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हमला बोलते हुए कहा, “ऐसा करने के बजाय क्या उन्हें एक बार यह बताना चाहिए कि किस कानून के तहत पीड़िता के परिवार को गुमराह किया गया? किस कानून के मुताबिक पुलिस दो घंटे बाद भी एफआईआर दर्ज नहीं कर सकी? किस कानून के मुताबिक पुलिस ने गलत जानकारी दी? किस कानून के मुताबिक पीड़िता के शव का जल्दबाजी में अंतिम संस्कार किया गया? किस कानून के मुताबिक उनकी पुलिस पीड़िता के परिवार को पैसे देना चाहती थी?” सुप्रीम कोर्ट के इस पूर्व जज ने यह भी आरोप लगाया कि राज्य का पुलिस-प्रशासन किसी कानून का पालन नहीं करता है.