छत्तीसगढ

सिम्स की सुरक्षा के लिए लगाए गए 94 सीसी टीवी कैमरे, अक्सर मिलते है बंद…

बिलासपुर। कुछ दिनों पहले वाकया हुआ, एक भर्ती मरीज अचानक भाग खड़ा हुआ।स्वजन ने इसकी जानकारी प्रबंधन को दी। सुरक्षा के बीच में मरीज का गायब होना भी प्रबंधन को नहीं पचा और तत्काल कैमरे से उसकी खोज करने के निर्देश दिए गए।

निगरानी टीम ने बताया कि सभी कैमरे चल रहे हैं। मरीज कहां गया अभी पता लगा लेंगे और जैसे ही कंट्रोल रूम में पहुंचे तो पता चला 13 कैमरे काम करते हुए नहीं मिले।

अधिकारी सकते में आ गए कि ऐसा क्या है जब हम सबूत खोजते हैं कैमरे बंद ही मिलते हैं। एक तरह से सिम्स के कैमरे प्रबंधन के लिए सिरदर्द साबित हो रहे हैं, क्योंकि बिना खामियां ही यहां के कैमरे बंद मिलते हैं।

परेशानी बना अटैचमेंट का खेल

एक बार फिर स्वास्थ्य विभाग में कर्मचारियों के चलते अटैचमेंट के खेल से पर्दा उठने लगा है। लगातार ऐसे कर्मचारियो की लिस्ट सामने आ रही है जो अपने मूल जगह गांवों में नौकरी छोड़कर सेटिंग के दम पर शहरी क्षेत्र के स्वास्थ्य केंद्रों, जिला अस्पताल के साथ ही मुख्य स्वास्थ्य विभाग कार्यालय में कार्य कर रहे हैं। यह कई साथी कर्मियों को रास नहीं आ रहा। ऐसे में अपने-अपने क्षेत्र की बिगड़ती स्वास्थ्य सुविधाओं का हवाला देते हुए क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों को सक्रिय कर रहे हैं
ऐसे में विधायक से लेकर पूर्व विधायक, सांसद व अन्य जनप्रतिनिधियों के फोन स्वास्थ्य विभाग में आ रहे हैं। अटैचमेंट के खेल को जहां खत्म करने की बात की जा रही है।,जिससे अब स्वास्थ्य अधिकारी तक परेशान होने लगे हैं।
वहीं इन सब के बीच सेटिंग कर अटैचमेंट होने वाले कर्मचारी दहशत में आ गए हैं, क्योंकि अब उन्हें फिर से मूल जगह पर काम करना पड़ सकता है। क्योंकि अब बने दबाव की वजह से मूल स्थान भेजना भी शुरू कर दिया है। वहीं इन सब के बीच जिन अधिकारियों ने अटैचमेंट का खेल खेला था, उनकी भी बन आई है, क्योंकि कभी भी इन पर बदली की गाज गिर सकती है।

मशीन बचने की तैयारी में

एक बार फिर कबाड़ के नाम पर पैसे बनेंगे। इस बार कंडम गाड़ियां या फिर कुर्सी, टेबल नहीं बल्कि चिकित्सीय मशीन को बड़ी संख्या में कबाड़ बनाया जा रहा है। वैसे भी कबाड़ को लेकर हाई कोर्ट और शासन की फटकार सिम्स के जिम्मेदार अधिकारियों को जमकर पड़ी थी।
इस दौरान निर्देश दिया गया कि सिम्स को कबाड़ मुक्त बनाया जाए, अन्यथा जिम्मेदार अधिकारियों की खैर नहीं रहेगी, लेकिन इस तरह के चेतावनी से भला सिम्स के अधिकारी डरेंगे। वे तो इसमें आपदा में अवसर की कहावत को चरितार्थ करते हुए इसमें भी कमाई का तरीका निकाल लिए और पुरानी मशीनों को ही कबाड़ बनाने लगे हैं।
बकि ये तमाम मशीन को बनाने की कोशिश की जाए तो कम से कम आधी मशीन फिर से काम कर सकती है, लेकिन इन्हें इससे क्या मतलब है, इन्हें तो कैसे भी सरकार को चुना लगाना है और कमीशन के रूप में मोटी रकम जो कमाना है

सिम्स में भी कोटपा एक्ट

सिम्स की व्यवस्था सुधारने और साफ सुथरा रखने की बड़े जोर शोर से कवायद चल रही है। इसकी वजह से सिम्स परिसर साफ भी दिख रहा है, लेकिन इस व्यवस्था को बनाए रखने में सबसे बड़ी दिक्कत पान गुटखा खाने वालों से है, क्योंकि इन्हें सुधारना कोई आसान काम नहीं है।
ऐसे में पान गुटखा की पीक मारने वालों के खिलाफ कार्रवाई की योजना के तहत यहां भी कोटपा एक्ट लागू किया जा रहा है और एक चिकित्सक को इसका नोडल अधिकारी भी बनाया गया है।
साथ ही जगह-जगह चस्पा किया गया है कि यदि कोई भी थूंकता है तो इसकी शिकायत करें, इसमे यह समझ नहीं आ रहा हैं कि सिर्फ शिकायत कर क्या किया जाएगा। इसमें फाइन आदि का कोई प्रविधान है कि नहीं, यह तक साफ नहीं है।
वैसे भी जब तक कोई शिकायत के लिए जाएगा, तब तक तो थूंकने वाला तो रफूचक्कर हो जाएगा। जबकि थूंकते पकड़ते ही फाइन लगाने का प्रविधान होना चाहिए, पर ऐसा नहीं है। इसलिए तमाम जतन के बाद भी थूंकने वालो पर लगाम नहीं लग रहा है और सिम्स को गंदा करने का सिलसिला बदस्तूर जारी है।
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