रेल प्रशासन के एलएचबी की तकनीकी खराबी यात्रियों पर पड़ रही भारी
बिलासपुर। एलएचबी कोच से चलने वाली ट्रेनों की एक तकनीकी खामी यात्रियों पर भारी पड़ रही है। इस वजह से यात्री कभी प्लेटफार्म पर फिसलकर गिर सकते हैं और उन्हें चोट लग सकती है। दरअसल जब ट्रेन प्लेटफार्म पर आकर खड़ी होती है, उसके बाद हाईड्रेन पाइप से पानी भरा जाता है। पानी जब ओवरफ्लो होता है तो ट्रैक पर गिरने की जगह प्लेटफार्म पर बहता है।
अचानक पानी बहने से यात्रियों के कदम थम जाते हैं। इसके अलावा कई बार उन्हें यात्री व उनका लगेज भी गीले हो जाते हैं। यह समस्या तब से हैं, जब से एलएचबी कोच से ट्रेनों का परिचालन शुरू हुआ है। शुरुआत में यात्रियों के बीच से इसकी शिकायत भी हुई। इसके बाद रेल प्रशासन हरकत में आया और कुछ कोच में इस समस्या का वैकल्पिक उपाय भी किया। इसके बाद दूसरे कोच में रेलवे ने कोई व्यवस्था नहीं की। इसका खामियाजा यात्रियों को भुगतना पड़ रहा है। वर्तमान में रेलवे ने सभी ट्रेनों के पुराने कोच को हटाकर उसकी जगह एलएचबी कोच जोड़ रही है।
बिलासपुर से छूटने और गुजरने वाली अधिकांश ट्रेनें इसी आधुनिक कोच के साथ चलती है। यह यात्रियों के लिए आरामदायक होने के साथ-साथ सुरक्षित भी है। इन्हीं विशेषताओं को देखते हुए एलएचबी कोच से ही ट्रेनों को चलाने की योजना है। यह योजना अकेले दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे जोन में लागू नहीं हुई है, बल्कि भारतीय रेलवे के प्रत्येक जोन में इन्हीं कोच से ट्रेनें चलाई जा रही है। पर इसमें तकनीकी खामियां हैं।
सभी प्लेटफार्म में यात्रियों के फिसलकर गिरने का खतरा है। वैसे भी अधिकांश यात्री ट्रेन हड़बड़ी में ही पकड़ते हैं। इस दौरान उनकी नजर प्लेटफार्म पर बह रहे पानी तक पर नहीं पड़ती। जबकि पुराने कोचों में इस तरह की दिक्कत बिल्कुल भी नहीं थी। ओवरफ्लो का पानी सीधे ट्रैक पर ही गिरता था और नाली से बाहर निकल जाता था।
पांच से सात मिनट में चेन पुलिंग होती है रिसेट
एलएचबी कोच में एक और तकनीकी खामियां चेन पुलिंग की है। जब कोई यात्री चेन पुलिंग कर ट्रेन रोकता है तो उसे रिसेट करने में रेलकर्मियों को पांच से सात मिनट तक जद्दोजहद करनी पड़ती है। जाहिर सी बात है कि इसकी वजह से ट्रेन विलंब भी होती है।